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________________ आज से पचीस वष पूर्व सन् १९०७ में मेरे स्वर्गीय पूज्य पिताजी ने श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स के पांचवें अधिवेशन के सभापति का पद ग्रहण किया था। यह अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ था और उस में पर्याप्त सफलता भी मिली थी। जैनमदद-फण्ड की स्थापना उसी अधिवेशन का परिणाम है। इस स्थायी फण्ड की सहायता से आज तक जैन विद्यार्थीगण लाभ उठा रहे हैं। परन्तु समाज की आवश्यकतामों को देखते हुए केवल यही फण्ड पर्याप्त नहीं है। इस प्रकार के कई फण्ड होने चाहिये, जिन से प्रान्त प्रान्त में और स्थान स्थान में हमारे समाज के असमर्थ छात्र विद्यार्जन से वञ्चित न रहने पावें। सम्मेलन के उद्देश्यों पर ये सब विवार आप महाशयों के सम्मुख है। अब आप लोगों का कर्तव्य है कि उन्हें अच्छी तरह मनन कर के उचित प्रस्ताव पास करें और उन्हें कार्य रूप में परिणत करें तथा कार्यकर्ताओं को सब प्रकार की सहायता दें। समय सयय पर और स्थान स्थान पर इस प्रकार के सम्मेलनों का होना. आव. श्यक है, जो बीच की कार्यवाही का निरीक्षण कर के उसे अग्रसर करते रहें। उद्देश्यों को सफल बनाने के लिये जिस प्रकार की कमिटी, सब कमिटी आदि आवश्यक हों, आप लोग उन का चुनाव करें। हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि समाज की जो पञ्चायते, सभा समितियां आदि वर्तमान हैं, उन्हें उखाड़ फेका जाय या ऊन का विरोध किया जाय, वरन हमारा लक्ष्य यह होना चाहिये कि अपनी समवेत शक्ति और संगठन से उन सषों को और भी पुष्ट किया जाय। उन की बुराइयों का समयानुकूल सुधार करें और उन की ओर समाज को जाग्रत रखें। गांव की पञ्चायतों तथा स्थान स्थान पर नवयुवकों अथवा वयोवृद्ध सजनों ने जो मण्डल, समितियाँ, संस्था आदि स्थापित कर रखी है तथा समाज की भलाई के लिये और जो कुछ कार्य चल रहे हैं उन में और भी स्फूर्ति पदा की.जाये और जिन जिन कारणों से उन्नति में बाधा पहुंचती है, उन्हें मिटा कर समाज को उन्नति की ओर बढ़ाया जाय। इस से पहले भी हमारी जातीय महासभा करने के लिये कई बार प्रयत्न हो चुके हैं और कई अधिवेशन भी हो चुके हैं। परन्तु खेद है कि वे प्रयत्न चिरस्थायी व हो सके। इस असफलता के अनेक कारण हैं। मैं महानुभावों से प्रार्थना करूंगा कि आप इन कारणों पर गम्भीरता पूर्वक विवार करें और पहले की असफलताओं के अनुभवों से लाभ उठाकर, इस महासभा की नींव को स्थायी और दूढ़ आधार पर स्थापित करें। पहले की असफलताओं से निराश होने की कोई बात नहीं है। असफलता हमारे अनुभव को बढ़ाती है, हमारी बुद्धि और सङ्कल्प को अधिक दूढ़ करती है और उस से हमारी भावी सफलता और भी अधिक जाज्वल्यमान हो उठती है। इस सम्बन्ध में मैं एक बात निवेदन करूंगा कि हमारे कार्य कर्ताओं को एक साथ ही अनेक योजनाओं ( स्कीमों) को हाथ में न लेना चाहिये। उस से हमारी शक्ति 10 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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