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________________ [४७ 1 नियमों के परिवर्तन से भयभीत न हों। जिस.प्रकार तरल जल अदृश्य वाष्प और कठोर हिम के बाहरी आकार-प्रकार में अत्यधिक अन्सर होने पर भी उनका आन्तरिक तत्त्व अर्थात् जल एक रहता है, इसी प्रकार बाहरी जीवन के नियम बदल जाने से हमारे आन्तरिक सत्य में किसी प्रकार का व्याघात नहीं पहुंचता । इस सभा ने अपने उद्देश्यों में केवल सामाजिक विषय रख कर सबके साम्प्रदायिक विवादों को दूर रखने की जो बुद्धिमानी की है, वह वास्तव में प्रशंसनीय है। बन्धुओ! हमारा धर्म सत्य और अहिंसा पर अवलम्बित है। इसलिये वह संसार में सब से अधिक समानता विश्वमैत्री और भ्रातृभाव का धर्म है। आधुनिक बड़े बड़े राजनैतिक विद्वानों के विचार की सीमा केवल मनुष्यों की समानता तक ही परिमित है, परन्तु हमारे धर्म में 'मित्तो मे सर्वभूयेसु'. यह समानता और मैत्रीभाव जीव मात्र के लिये है। ऊंच-नीच का विचार जैन-धर्म के बिलकुल ही प्रतिकूल है। हमारे यहां अष्ट मदों की गणना भयंकर पापों में हैं। इन अष्ट मदों से यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल ऊंच-नीच का विवार और कुल मद ही गर्हित नहीं है, वरन धनमद, ज्ञानमद आदि बातें भी वर्जित हैं, जिन से प्रकट है कि जैन धर्म साम्यवादी है। खतन्त्रता और धार्मिक उदारता की दृष्टि से भारत का कोई अन्य धर्म जैन धर्म की बराबरी नहीं कर सकता। सजनों! जैन साधनों की व्यावहारिक सफलता का सब से महान, सब से उज्ज्वल उदाहरण आज पृथ्वी के सब से श्रेष्ठ महापुरुष ने उपस्थित किया है, जिसे देख कर सारा संसार आश्चर्य से चकित स्तम्भित रह गया है। यह उदाहरण है सावरमती के संत महात्मा गांधी का नवीनतम अनशनव्रत। आप को यह बतलाने की आवश्यकता नहीं है कि महात्माजी का यह अनशन हमारे जैनसिद्धान्तों के सर्वथा अनुकूल है। इस प्रकार आज फिर एक बार महात्माजी ने आत्मशक्ति की महानता और जैनसिद्धान्तों की उत्कृष्टता की विजय-दुन्दुभी बजा दी है। सजनों! इस महासभा के प्रमुख पद.का भार आपने मुझे देकर मेरा सम्मान किया है, बँधे हुए ढर्रे के अनुसार मुझे आरम्भ में ही उसके लिये धन्यवाद देना चाहिये था, परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया, इस के लिये क्षमा चाहता हूं। आजकल डिक्टेटरशिप का युग है। संसार के अनेक देशों में डिक्टेटरों द्वारा शासन हो रहा है। भारत में भी. एक ओर कांग्रेस के डिक्टेटर दिखाई देते हैं और दूसरो ओर सरकार ने आर्डिनेन्स निकाल कर एक प्रकार से सरकार को डिक्टेटरशिप स्थापित कर रखा है। डिक्टेटर की आज्ञा का पालन करना हर एक का कर्तव्य है। परन्तु इन डिक्टेटरशिपों में सबसे विकट डिक्टेटर. शिप है साधारण जनता की। उस की आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता। हमारे यहां भी व परमेश्वर' कहलाते हैं। पनों की आज्ञा ईश्वरीय आज्ञा के समान कही गयी है। फिर यदि कहीं यह डिक्टेटरशिप प्रेम की हई तब तो उस की आज्ञाओं की कठोरता बहत अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि प्रेम के.बन्धन लौह शृंखलाओं से सहस्रों गुना अधिक दृढ़ होते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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