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________________ [ ४] है। वे अटूट है। समाज के पञ्चों ने जब एक मत से प्रेमपूर्वक इस महान् पद का भार उठाने की मी आज्ञा दी तब मझे भी अपनी सविधा-असविधा का. अपने रून शरीर और अखस्थता का विचार न कर के पञ्चों को आज्ञा को शिरोधार्य करना पड़ा। मैं इस पद के योग्य हूं, या अयोग्य हूं, मुझ से इस गुरुसर पद का उत्तरदायित्व और कर्त्तव्य पूरा हो सकेगा या नहीं, यह निर्णय करना आप महानुभावों का काम था। मेरा काम तो केवल आज्ञापालन करना है। हाँ, मैं आप को यह विश्वास दिलाता हूं कि अपनी शक्ति और रुद्र बुद्धि के अनुसार आप की आज्ञाओं और अपने कर्तव्यों को पूरा करने का कायमनोवाक्य से प्रयत्न करूंगा। _ विद्या प्रचार के उद्देश्य को कार्य रूप में परिणत करना सम्मेलन का प्रथम कर्तव्य है । 'विद्यारत्न महाधनम्' 'किं किं न साधयति कल्पलतैवविद्या,' 'विद्वान् सर्वत्र पूज्यते' मादि महापुरुषों के वाक्य आप सब सजन जानते हैं, अतः इस विषय पर अधिक व्याख्या की आवश्यकता नहीं। समाज का असली हित और जातीय उन्नति केवल ज्ञान वृद्धि से ही हो सकती है। जाति की उन्नति में अशिक्षा बड़ी घातक सिद्ध हो रही है। इस से भी हानिकारक बात यह है कि अशिक्षित व्यक्ति अपने हित और अहित के प्रति अंधा बन जाता है। वह बहुधा भले को बुरा और बुरे को भला समझने लगता है। आज यूरोप जो इतना सुसंगठित और ज्ञान-विज्ञान में उन्नत होकर सब प्रकार से सम्पन्न है, उसका सब से बड़ा कारण उस की सार्वजनिक शिक्षा ही है। इस के अभाव के कारण ही हमारे समाज में अगणित कुसंस्कार, पारस्परिक ईर्षा, द्वेष, घृणित कुरीतियाँ और कुत्सित विचारों ने घर कर लिया है। आप लोगों को मालूम ही है कि अन्य जातियों की अपेक्षा हमारी जातिमें शिक्षा का प्रचार बहुत कम है। अंग्रेजी विद्या में तो हम बहुत ही पिछड़े हुए हैं। इस में सन्देह नहीं कि हम शिक्षा में क्रमशः कुछ २ आगे बढ़ रहे हैं। परन्तु यदि हम कछुवे की चाल से चलेंगे तो अन्य जातियों की दौड़ में हम कितने पीछे रह जायेंगे यह कल्पना करने से ही हृदय काँप उठता है। हमारे समाज में उच्च शिक्षा प्राप्त डाक्टर, वकील, वैरिष्टर, प्रोफेसर और इञ्जीनियर आदि की संख्या बहुत ही अल्प है। समाज के लिये क्या यह कम लजा का विषय है ? हमारी जाति के लिये इस से अधिक खेद का विषय और क्या हो सकता है ? हमारी यह दुर्गति ओसवाल जाति की उस कुम्भकर्णी निद्रा का परिणय देती है, जो अभीतक टूटने का नाम नहीं लेती। सजनों! हम कबतक इस प्रकार कान में तेल डाले पड़े रहेंगे? अब संकट चरम सीमा तक पहुंच गया है। इस के लिये शीन ही पौर प्रश्न उद्योग होना चाहिये, जिस से हमारी इस घोर तामसी अविया रूप विटा का अन्त हो। अज्ञान के निविड़ अन्धकार में हमें अपनी उन्नति का रास्ता नहीं सूझ पड़ता। अन्धेरे में तो हित अहित और अहित अपना कल्याण मालूम देता है। नींद की इस ब्रड़ता में प्रायः बहुधा यह देखा जाता है कि सोया हुआ आदमी जमाने वाले को अपना शत्लु समझता है। परन्तु यह स्पष्ट है कि जगाने में यह विलम्ब, पह आलस्य ही मनुष्य का परम बैरी है। 'आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः' । मापने सारे भोलवाल समाज को जगाने के लिये ही आप सब महाशय आज यहां एकत्रित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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