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[ २६ ] भूसावल वाले बाबू पूनमचन्दजी नाहटा ने इस प्रस्ताव को रखते हुए अपने भाषण में कहा कि किसी भी देश और जाति की उन्नति उसके लड़के लड़कियों की शिक्षा पर निर्भर है। आज हमारे समाज का पूर्ण लक्ष्य ओसवाल जातिको उन्नत करने का है और यह तभी हो सकता है जब कि प्रत्येक ओसवाल बालक और बालिका पढ़ लिख कर तैयार हो। देखिये! जापान थोड़े ही वर्ष पहिले बहुत पिछड़ा हुआ था और अब वह शिक्षित होनेके कारण ही इतनी उन्नति की है। उन्होंने कहा कि शिक्षा से केवल लिखना पढ़ना ही मेरा अभिप्राय नहीं है-यह शब्द बहुत व्यापक है। शारीरिक बल बढ़ाना आदि भी शिक्षा ही है। दुर्भाग्यवश हमारी जाति में शारीरिक उन्नति के साधन तथा विद्याध्ययन के स्कूल, कालेज एवं कला कौशल की शिक्षा प्राप्त करने के लिये कारखाने बहुत ही कम हैं और यही कारण है कि हम अपने आपको आजकल ऐसी गिरी दशा में पाते हैं। अब समाज को जागृत होकर अपने बच्चों को शिक्षाको अपने हाथ में लेकर देशकालानुसार आगे बढ़ना चाहिये।
प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए फलोदी-निवासी बाबू फूलचन्दजी झावके ने कहा कि विद्या, दान, हरिध्यान और कृपाण, इन चार गुणों से हर जाति का गौरव जाना जाता है। अपने ओसवाल समाज में सर्वगुणसम्पन्न पुरुष हो गये हैं। कृपाण का चमत्कार देखना हो तो गुजरात के दण्डनायक आभू और विमलशाह मन्त्री आदिका वर्णन पढ़िये। हरिध्यान में श्रीस्थूलिभद्रजी, गजसुकुमालजी, महाराजा कुमारपालजी अदिके जीवन को सामने रखिये। दान में वीरवर भामाशाह, वस्तुपाल और तेजपाल प्रसिद्ध हैं। विद्या में तो कहना ही क्या, एक से एक बढ़े चढ़े हो गये हैं। श्री समय सुन्दरजी कृत 'अष्टलक्षो' (एक पद के आठलाख अर्थ) और श्री हेमचन्द्राचार्य कृत 'द्विसंधान' पढ़िये, इस में एक रूप में तो प्राकृत सूत्र सिद्ध किये हैं उसी से श्लेषालंकार में अर्थात् दूसरे अर्थ में महाराजा कुमारपाल का जीवन चरित्र वर्णन कर दिया है। आपलोग प्राचीन इतिहास को पढिये और इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कीजिये।
पश्चात् अजमेर वाले बाबू गजमलजी लोढ़ा ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए शिक्षा की परिभाषा की ओर बतलाया कि शिक्षा वही है जिससे मनुष्य की बुद्धि का विकाश हो और जिससे भला बुरा पहचानने का विवेक अधिक बढ़े। उन्होंने ओसवाल युनिवर्सिटी की योजना सामने रखी और कहा कि अगर प्रत्येक ओसवाल एक२ पैसा रोज दे तो साल भर में ६० लाख रुपये आ सकते हैं परन्तु शक्ति होते हुए भी इच्छा नहीं होती। और भी बताया कि सब उन्नतिशील देशों में शिक्षा पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है। उदाहरण स्वरूप भारत में ही मुसलमान लोग प्रायः गरीब रहते हुए भी अपनो कौम के बच्चों की तालीमी पर ज्यादा खर्च और परिश्रम करते हैं। अपना समाज इस ओर बहुत निरुत्साही दिखता हैं। ओसवालों की छोटी संस्थायें जैसे अजमेर का ओसवाल हाई स्कूल तथा दूसरे २ सामाजिक छात्रालय वा विद्यालय अच्छी दशा में नहीं है। भोसवालों के लिये क्या कठिन है कि इन संस्थाओं को चन्दे द्वारा आर्थिक सहायता
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