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________________ [ ५६ ] विह्वल परिवार शोकसागर में मग्न छटपटा रहा है, उसे अपनी सुध नहीं है, ऐसो घोर विपत्ति के समय में उस पर यह बोझ लाद दिया जाता है कि वह अपने सम्बन्धियों को दावत दे और उनके भोजन के लिये पूड़ी और मिठाइयां तैयार करे। वह मातम मनावे या हम को छक छक के जिमावे । यदि निर्धन कुटुम्ब में किसी की मृत्यु हो तो उसे मरने का उतना दुःख नहीं होता है । असह्य यन्त्रणा तो आनेवाले कुटुम्बियों को दावत देने की हो जाती है । यह कुत्सित प्रथा शीघ्र बन्द होनी चाहिये। ऐसे अवसर पर हमारा मुर्शिदा बाद का समाज जो व्यवहार करता है, वह विशेष सराहनीय है। वहां अपने सम्बन्धी तथा कुटुम्ब के लोग भोजन करने नहीं जाते। बल्कि अपना धर्मं समझते हैं कि शोक सन्तप्त परिवार को खाना पकाने के भांझट से बचायें। वे कई दिनों तक — जब तक अशौच रहे - भोजन का पकापकाया सामान भेजते रहते हैं । मेरी समझ में यदि सब जाति भाई यह प्रथा अपना लें तो हमारे समाज की एक निष्ठुर कुप्रथा दूर हो जाये। मृतक के घर में धीरज दिलाने जा कर वहाँ जुहारी वगैरह के रूप में रुपये लेना और देना तो इस से भी अधिक निन्दनीय है । एक तो मृतक के घर वालों पर इष्ट वियोग से घोर शोक छाया रहता है। उस पर यदि सहानुभूति दिखाने और उनकी आर्थिक सहायता करने के स्थान पर उल्टे उनसे धन लिया जाय और उन पर अर्थ सङ्कट डाला जाय तो यह समाज के लिये महान कलङ्क का विषय है । इसके अतिरिक्त गुजरात की तरफ मृत्यु पर छाती पोटना, पंजाब, राजपूताना आदि प्रदेशों में जब जब कोई सगे सम्बम्धी 'मुकाम' देने के लिये आते हैं, तब तब रोना पीटना आदि कुप्रथायें भी निरर्थक और निन्दनीय हैं। जिन प्रथाओं से समाज को लाभ के बदले हानि होती हो उन्हें जितनी जल्दी छोड़ा जाय उतना हो समाज का अधिक कल्याण हो । मृतकभोज, वर्षी आदि कुप्रथायें भो हमें छोड़नी पड़ेगी। क्योंकि इनसे हानि के सिवा लाभ नहीं है । हमारी जाति को भी इन प्रथाओं के विरुद्ध आन्दोलन करना चाहिये, ताकि सब भाई जान जांय कि इन से क्या अहित हो रहा है। I .. अछूतोद्धार के प्रश्न ने आज भारत भर में भीषण खलबली मचा दी है। महात्मा गांधी ने अपना अमूल्य जीवन संकट में डाल कर जो भीष्म प्रतिज्ञा की थी, उसने इस समस्या का विशाल और उग्र रूप सब के सामने उपस्थित कर दिया है । हिन्दू समाज का कोई अङ्ग ऐसा नहीं है, जो इस जटिल प्रश्न से विचलित न हुआ हो । यह है भी स्वाभाविक, क्योंकि २२ करोड़ हिन्दुओं में प्रायः ७ करोड़ अछूत माने जाते हैं और यदि ये हम से अलग हो जांय तो हमारा तिहाई अङ्ग ही कट जायगा । उस समय हमारी जो दुर्गति होगी, उसकी कल्पना भी भयंकर है । जैन समाज भी हिन्दू जाति का अंश होने के कारण इस विकट परिस्थिति से कोरा नहीं निकल सकता । राष्ट्रीय भावापन्न कुछ जेनी भाई अछूतोद्धार में जुट गये हैं और वे अनेक उपायों से अस्पृश्यों को अपनाने लगे हैं। इसलिये यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि जैन समाज को ठोक पथ पर रखने के पूर्ण और विवेक सम्मत विचार रखे जांय । लिये उस के सम्मुख युक्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034568
Book TitleOswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Sahab Krushnalal Bafna
PublisherRai Sahab Krushnalal Bafna
Publication Year1933
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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