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योग शास्त्र
[१४५ अपवाद का सेवन तो यदा कदा होता है, यदि वह जीवन का अंग ही बन जाए तो चारित्र ही सन्दिग्ध हो जाता है । साधु साध्वी या श्रावक सभी अपवादों के साथ-साथ उत्सर्ग मार्ग को ही महत्ता दे, तो आचार शैथिल्य को समाप्त किया जा सकता
ज्ञान दर्शन का चारित्र के साथ क्या सम्बन्ध है। तीनों के संमिश्रण से अथवा 'ज्ञान तथा चारित्र उभय योग से ही कैसे मोक्ष को प्राप्ति हो सकती है, यह समझाने के लिए आगामी पृष्ठों में ज्ञान तथा क्रिया--दोनों के खंडन मंडन के रूप में ६१ तर्क प्रस्तुत किए हैं । यद्यपि तर्क द्वारा 'ज्ञान क्रिया योग' की सिद्धि की गई है तथापि शास्त्रों के उद्धरण भी दिए गए हैं, ताकि पाठक एकांत ज्ञान या क्रिया का परिहार करके दोनों में उद्यमवान् बन सकें।
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