________________
अब हेमचंद्राचार्य द्वितीय महाव्रत का स्वरूप प्रतिपादन
करते है ।
सत्य
प्रियं पथ्यं वचस्तथ्यं, सूनृतव्रतमुच्यते ।
तत् तथ्यमपिनो तथ्यं, अप्रियं चाहितं च यत् ॥२१॥
1
अर्थ - प्रिय हितकारी तथा सत्य वचन ही सत्य महाव्रत होता है । जो सत्य वचन प्रिय तथा हितकारी नहीं होता वह सत्य होकर भी सत्य नहीं होता क्योंकि उस से हिंसा का दोष लगता है ।
विवेचन - संत्य एक ऐसा देवता है, जिस के आगे सभी देव-दानव किन्नर तथा मनुष्य नमस्कार करते हैं । सत्य इस जगत का आधार है । एक कवि का कथन है
सत्येन धार्यते पृथ्वी, सत्येन तपते रविः । सत्येन पवनः वहति, सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ।
सत्य से ही पृथ्वी खड़ी है । सत्य से ही सूर्य तपता है, सत्य से ही पवन चलती है, सब कुछ सारा संसार सत्य पर आधारित
Jain Education International
यदि इस संसार में दुर्जन, बेईमान तथा असत्यवादी लोगों को सफलता मिल जाती तो प्रलय लाखों वर्ष पहले हो चुकी
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org