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अचौर्य
अनादानमदत्तस्यास्तेयव्रतमुदीरितम् ।
बाह्याः प्राणाः नृणामों, हरता तं हता हिते ॥२२॥ अर्थ-न दिए को ग्रहण न करना अदत्तादान महावत है। मानव के लिए धन बाह्य प्राण है, उस के अपहरण से ही उस के प्राणों का हरण हो जाता है ।
बिना किसी से पूछे किसी वस्तु का स्पर्श मत करो। साधु आप के घर आते हैं। आप के घर में सैंकड़ों प्रकार के पदार्थ होते हैं, परन्तु साधु उन को देख कर भी स्पर्श नहीं करता है। साधु गहस्थ के घर में समस्त पड़े तण को भी स्पर्श नहीं करता। उस के लिए उसे गहस्थ की आज्ञा लेनी पड़ती है । साध धर्म में समस्त विधि अनवद्य तथा निरवद्य होने की है। जो भी गृहस्थ की सांसारिक क्रिया है, उन सभी से मुक्त हो जाना—यह सर्वविरति धर्म है। .पांच महाव्रतों में अदत्तादान विरला व्रत है, अनुपम व्रत है । क्योंकि हेरा फेरी, बेईमानी, ठगी किए बिना सांसारिक प्राणी का जीवन निर्वाह ही नहीं हो सकता । कदम-कदम पर मानव हिंसा करता है। कदम-कदम पर झूठ बोलता है । इसी तरह कदम-कदम पर हेरा फेरी भी करता है।
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