Book Title: Yogshastra
Author(s): Yashobhadravijay
Publisher: Vijayvallabh Mission

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Page 328
________________ १७५।१७ दुर्मुख-दुर्मुख ... ।२७ सोचते ही रहे-x १७६।३ डाल-डालूं , ।१७ में-मैं १७७।१ मृत्यु-मृत्यु को , १० नाशिण-नाशिनी ., १३ कर्म-कम , १४ वैसे-वैसा ,, ।१७ काहि- रहि १७८०१ कुचलो कुचली १७९।१९ रहे-आरहे १८०१३ संमिती-समिति ,, २१ से-से करें १८१।१५ चित्र-चित्रण १८:१२.९ जब-X ,, २७ मन-मन में १८३।१९ और-परंतु १८६।१८ मिण्ट-मिनिट १८७।३ दुग्गोचर-दृग्गोचर ,, १४ पर-पर एक " १९ वे-यह १८९३ Defination-Definition १९०।१२ की-को , १८ से-में १९२.७,२८ से-में १९४५ को-से १९५।१० होती-होती है १९७७ से-में १९८१२ घर्म-धर्म , 1819 Poltryform २००।११-४ ।।२४-६ २०२।३ आते-आते हैं जो ,. ७ मिण्ट-मिनिट ,, ।१६ से-में २०३।८ असूलों-उसूलों , १७ व्यापार-व्यवहार. २०४।५ परन्तू-परन्तु , ७ बच्चों-बच्चे ,, ७ झट-झूठ ., ।२५ परन्तु - २०५।१७ तो-भारतीय ,, ।१८ ये-में ,, ।१९ उसके-उसमें ., ।२५ संत्री-व्यक्ति २०७।९ नहों-नहीं. ,, ।१३ योगिनो-योगिनी २०८७ वचना-वंचना ,, ।१४,२७ व्यक्कि-व्यक्ति , ।१६ समह-समूह ,, ।१७ लोगौं-लोगों ,, ।१९ समय-सत्य २०९ २५ की-का २१२१७ समाज-असत्य २१३।२६ भी-भी विश्व २१४।२२ असत्या बोलन-असत्य बोलना २१५।५ कभी-२-कभी भी २१६६३ धत्य-सत्य (१३ भरत में-भारत में library.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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