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योग शास्त्र
[२४१ क्या चोरी का अनुमोदन करने वाला चोर नहीं होता ? यदि वह स्वयं चोर न हो, चोरी को सत्कर्म न मानता हो तो वह चोर की या चोरी की अनुमोदना क्यों करेगा?
अभय कुमार ने जिस समय सम्राट् श्रेणिक के उद्यान में से आम्रफल चुराने वाले व्यक्ति को पकड़ने के लिए एक सभा का आयोजन किया तथा वहां पर एक कथा सुनाई तो आम्रचोर व्यक्ति ने तुरन्त कहा था कि, 'जिन चोरों ने आभूषण सहित कन्या के आभूषण नहीं चुराए, उन का कार्य सब से कठिन था, अभय कुमार ने तुरन्त उसे चोर समझ कर पकड़ लिया।
गृहस्थ से मन ही मन अनुमोदना हो जाती है क्योंकि उस का जीवन ही पापों में से गुजर रहा होता है । वह साधु तो नहीं कि किसी के पाप से उस का दूर का भी सम्बन्ध न हो। कोई सराफ हो तथा वह स्मगलिंग या चोरी का सोना सस्ते दामों पर ले रहा हो तो सामने वाले सराफ के मन में यह विचार प्रायः आ ही जाएगा कि काश ! मेरे पास भी इतना रुपया होता तो मैं भी रात में ही लखपति बन जाता। ___ अदत्त ग्रहण नीति के भी विरुद्ध है । साधु बिना मांगे किसी की वस्तु लेगा या स्पर्श करेगा तो कुत्रचित् कलह क्लेश उत्पन्न हो सकता है। अथबा उस साध का अपमान हो सकता है। साध का जीवन तो कलह तथा अपमान से दूर होना चाहिए ? यदि साधु कलह तथा अपमान के चक्रव्यूह में फंस गया तो वह दुःखी होता रहेगा, साधना न कर पाएगा।
अतएव अदत्त के त्यागी साधु का जीवन आदर्श होता है । इसी लिए साधु की एक ही आवाज, एक ही उपदेशकण लाखों प्राणियों का कल्याण करने में समर्थ होता है।
श्रीमद्हेमचन्द्राचार्य ने अदत्तादान महाव्रत की पांच भाव
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