Book Title: Yogshastra
Author(s): Yashobhadravijay
Publisher: Vijayvallabh Mission

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Page 313
________________ योग शास्त्र [२-७ धनवान् को प्रायः अनिद्रा का रोग होता है। धन से गद्द े तो खरीदे जा सकते हैं, नींद को खरीदा नहीं जा सकता । एक व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का दान देता है तथा एक व्यक्ति अपरिग्रही बन कर सन्तोषी बन जाता है । इन दोनों के मध्य सन्तोषी अपरिग्रही अधिक महान् है । संतोष अपरिग्रही इच्छा को मूर्च्छा को ही छोड़ देता है । सन्तोष धारण करने वाला व्यापार ने घाटा पड़ने पर परेशान नहीं होता । वह मानता है कि धन यदि आता है तो जाता भी है। घाटा भी उस के लिए लाभकारी ही होता है । जिस से वह सन्तोषी बन रहता है । अपरिग्रह का समुच्चयार्थ यह है, "अपने पास आवश्यकता पूर्ति की वस्तुएं रख कर शेष सब दान दे देना, अथवा पूर्णतः निःस्पृह हो जाना, अथवा ममता मोह का त्याग करना ।" जहां ममता होती है वहां समता का निवास नहीं होता । संसार के पदार्थों के प्रति मोह - ममता का भाव मानव को अधोगति तक ले जाता हैं। जब मानव के पास सांसारिक पदार्थ होंगे तो इन पदार्थों का मोह भी होगा । इसीलिए अन्य देवों की भांति जिनदेव तीर्थंकर के पास कोई शस्त्र अस्त्र स्त्री या धनादि आडम्बर नहीं होते । क्योंकि ये समस्त साधन रागादि के प्रतीकात्मक चिन्ह हैं । जिन देवो के पास ये चिन्ह होते हैं, वे क्या समय आने पर उनका उपयोग न करेंगे ? जिन देवों के पास स्त्री है वे समय आने पर क्या उस का उपयोग न करेंगे ? जिन देवों के पास धनुष बाण, गदा या तलवार आदि शस्त्र हैं, वे क्या शत्रु के द्वारा आक्रमण किए जाने पर उस शत्रु का संहार न करेंगे ? अवश्य ही करेंगे । तात्पर्य है कि तीर्थंकर भगवान जब निःसंग एवं निःस्पृह हैं तो उनके पास शस्त्र, स्त्री आदि पदार्थ क्यों होंगे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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