Book Title: Yogshastra
Author(s): Yashobhadravijay
Publisher: Vijayvallabh Mission

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Page 309
________________ योग शास्त्र [ २८३ इकट्ठा किया हुआ सारा रुपया उड़ा देगा 1 यदि सपूत होगा तो स्वयं कमा लेगा । क्योंकि वह सपूत है । कभी बेटों के लिए मत कमाना । सभा में पैसे के बिना हमें पहचानेगा कौन ? ठीक ही है । सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते ।” सभी गुण धन के आश्रित हैं । सभी लोग धन का ही सन्मान करते हैं । इन्सान का नहीं । जब कि गुणों का धन के साथ दूर का भी रिश्ता नहीं होता । "आलस्यं स्थिरतामुपैति ।" व्यक्ति आलस से ५-६ घण्टे दुकान पर बैठा रहे तो लोग कहेंगे कि यह सेठ साहब की स्थिरता है । एक ही आसन पर एक ही स्थान पर बैठे रहना कितना मुश्किल है ? देखो ! इसे घूमने फिरने का बिल्कुल भी शौक नहीं है । यदि आलस से बैठा रहने वाला व्यक्ति गरीब हो, तो यह दोष, दोष ही दिखेगा । यह सब धन का ही प्रभाव है । धन के बिना शायद कोई आप को न पहचाने । लोग आप को प्रतिष्ठा न दें । परन्तु क्या समस्त धनी व्यक्ति प्रतिष्ठित ही होते हैं । वास्तव में मानव का व्यवहार तथा सदाचार ही उस की प्रतिष्ठा का द्योतक है। यदि आप के पास अच्छा आचार है, विचार है तो प्रतिष्ठा की परवाह करने की आवश्यकता नहीं है । वह स्वयं ही मिल जाएगी । कहीं आप की दृष्टि टाटा, विरला की सम्पति पर तो नहीं . कि हमारे पास इतनी क्यों नहीं है ? स्मरण रहे कि धन किसी को भी धोखा दे सकता है । यह कभी भी आप के पास से जा सकता है । अत: इसे पहले ही क्यों न छोड़ दिया जाए। आप की आवश्यकता की पूर्ति तो हो सकती है, परन्तु इच्छाओं की पूर्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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