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__ अचौर्य आज के युग में यदि सुखी है तो सर्विस मैन है। उस की आय कम है तो उस का तदनुरूप बजट भी होगा। तदनुरूप बह उपाय करेगा, एक निश्चित मासिक आय के कारण न केवल वह चिंता मुक्त रहता है, अपितु सन्तुष्ट भी हो सकता है । यद्यपि रिश्वत लेने वाले इन क्षेत्रों में भी देखे जाते हैं तथापि जनता के साथ जिनका संपर्क नहीं उन में रिश्वत की सम्भावना भी कम होती है तथा शुद्ध आय तथा सन्तुष्ट जीवन की संभावना भी अधिक होती है। व्यापारी वर्ग को ईमानदारी तथा सन्तोष धारण करना चाहिए । ईमानदारी के व्यापार में आप को जरा सा धैर्य तो धारण करना ही होगा। प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी। परन्तु 'सहज पके सो मीठा होय' उक्ति के अनुसार कुछ ही समय में आप के व्यापार को चार चांद लग जाएंगे।
न्याय सम्पन्न वैभव । श्रावक बनाने की पूर्व भूमिका रूप गुणों में प्रथम गुण यह अचौर्य का ही उपनाम है। यह गुण जीवनसौध की आधारशिला है । वैभव यदि न्याय सम्पन्न होगा तो अन्य उपगुणों की प्राप्ति भी हो सकेगी तथा श्रावक बनने की एवं देशविरति धर्म को प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त हो सकेगी।
साधु धर्म में 'अदत्त' के अनादान में द्रव्य (पैसा) को भी समाविष्ट किया गया है क्योंकि वह 'तीर्थकर अदत्त' है । तीर्थंकर देव ने साध को द्रव्य (रुपया, सोना, चांदी आदि) रखना इस लिए निषिद्ध किया है कि द्रव्य से त्याग स्थिर नहीं रहता। साधु धर्म अनवद्य है, अतः भगवान महावीर ने साधु को पाप से बचाने के लिए द्रव्य के स्पर्श का वर्जन किया है। ___ गृहस्थ के धर्म में अनुमोदन की कुछ छूट है । क्योंकि किसी भी पाप कार्य का उस से अनुमोदन हो ही जाता है । (सावज्जं जोर्ग पच्चक्खामि, दुविहं तिविहेणं, 'करेमिभंते सूत्र) परन्तु साधु के लिए तो अनुमोदना का भी पूर्णतः निषेध है।
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