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योग शास्त्र
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प्रसंगानुसार दूसरी बात कहता है तो पहली बात को भूल जाता है । उस की मति तीक्ष्ण नहीं रहती । बुद्धि विचलित ही अनुभव होती है । कार्य करने को मन नहीं करता तथा मानव स्वयं को सदैव तनाव ग्रस्त तथा थका-थका हुआ सा अनुभव करता है ।
जब कि ब्रह्मचर्य का पालन इन समस्त बाधाओं तथा दुरवस्थाओं से रक्षा करता है ।
ब्रह्मचारी का शरीर सौष्ठव आकर्षक होता है । उस का स्वास्थ्य श्रेष्ठ होता है तथा उस का मनोबल बहुत ऊँचा हाता है । वह अपनी इच्छा शक्ति से अलभ्य पदार्थों को भी प्राप्त कर लेता हैं । वह साहस के बल पर असफलताओं को पार करता हुआ, कदम-कदम पर ठोकरें खाता हुआ भी अन्ततः सफल हो जाता है ।
ब्रह्मचारी की मात्र अनुमोदना करने से भी अत्यन्त लाभ होता है | पेड़शाह !
एक बार एक श्रेष्ठी ने ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकार करने वालों को एक-एक पोशाक भेंट दी । वह व्यक्ति पेथड़ शाह को भी नगर श्रेष्ठी होने के कारण वह पोशाक देने गया । पेथड़शाह ने पूछा कि "यह पोशाक किस लिए दे रहे हो ?" उस श्रेष्ठी ने उत्तर दिया कि नगर में जिन व्यक्तियों ने ब्रह्मचर्य धारण किया है, उनको मैंने यह पोशाक दी है ।
पेड़ ने सोचा कि मैं इस पोशाक के योग्य नहीं हूं, क्योंकि मैंने तो यह व्रत लिया नहीं है । परन्तु प्रेमपूर्वक पोशाक देने आए इस श्रेष्ठी को इन्कार भी कैसे किया जा सकता है ? यह सोचकर पेथड़ शाह ने तुरन्त मन में ही ब्रह्मचर्य का नियम लिया तथा तत्पश्चात् ही पोशाक को स्वीकार किया ।
दूसरों के ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ समझ कर अनुमोदन करने वाला ही यह साहस कर सकता है ।
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