Book Title: Yogshastra
Author(s): Yashobhadravijay
Publisher: Vijayvallabh Mission

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Page 289
________________ योग शास्त्र २६३ वह बोल उठ, "न्याय के ग्रन्थ की यह टीका तेरे निमित से से निर्मित हुई है इसका नाम तेरे ही नाम पर देता हूं । क्या नाम है तेरा ?" बस तब से वह टीका भामती टीका के नाम से ही प्रख्यात हो गई । वाचस्पति मिश्र को जो आनन्द पुस्तकों में प्राप्त हुआ, वह आनन्द "प्रियतमा" में न दिखा । अन्यथा पत्नी को विस्मृत करना कोई सरल कार्य न था । सच है कि कंचन एवं कामिनी के मोह को तोड़ने वाले योगी अलौकिक आनन्द की अनुभूति करते हैं । यदि इतिहास में परस्त्री का अपहरण करने वाले रावणों की कथाएं हैं । (यद्यपि रावण ने सीता का स्पर्श मात्र भी नहीं किया) तो भारतीय संस्कृति को उज्ज्वल बनाने वाली मदन रेखा, जम्बूस्वामी, वज्रबाहु तथा विवेकानन्द की भी जीवन कथाएं कथा प्रसंगों में उट्टकित हैं । यदि इतिहास में स्त्री के कारण गुरु से शाप को प्राप्त करने वाले कूल बालक मुनि तथा योग भ्रष्ट नंदिषेण मुनि हुए हैं, तो स्थूलभद्र, मानतुंग सूरि तथा वज्रस्वामी जैसे मुनियों की भी कमी नहीं हैं । स्थूलभद्र मुनि पूर्वमुक्त कोशा वेश्या के महल में षडरस भोजन करते हुए भी निर्विकार रहे । वज्र स्वामी एक सेठ द्वारा एक क्रोड़ सुवर्ण मुद्रा तथा अपनी रूपवती रुक्मिणी के दिए जाने की बात सुन कर भी विचलित नहीं हुए । भरहेसर की सज्झाय में वर्णित समस्त महापुरुष तथा प्रातः स्मरणीय सतियां गृहत्याग करके संयमी नहीं बनी थीं, इन में से बहुत सी संतियां मात्र पतिव्रता होने के कारण ही प्रातः स्मरणीय बन गईं। साधु तथा साध्वी तो वंदनीय हैं ही, सद्गृहस्थ भी वंदनीय हो सकते हैं । • For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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