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ब्रह्मचर्य
कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने चारित्र के चौथे भेद के रूप में ब्रह्मचर्य की निरूपणा की। उन के कथनानुसार संसार के भौतिक पदार्थों की आवश्यकता तथा संसार की प्रेम मोहब्बत छोड़ देना ब्रह्मचर्य है।
शास्त्रों में ब्रह्मचर्य :-व्यक्ति स्वयं को संयम में स्थिर करे। यह शरीर भोगों का इच्छुक है । संसार के समस्त पदार्थों के त्याग का मार्ग सरल है । ब्रह्मचर्य इस से भी कठिन है। शास्त्रकारों का कथन है, "तवेसू वा उत्तमं बंभचेरं" सभी प्रकार के तपों में ब्रह्मचर्य उत्तम है। क्योंकि ब्रह्मचर्य अत्यन्त काठिन्य से साधक को सिद्ध होता है । किसी विद्या को प्राप्त कर लेना या किसी देवता को सिद्ध कर लेना सरल है परन्तु ब्रह्मचर्य का पालन अत्यन्त दुष्कर है। अन्य धार्मिक कार्यों में व्यक्ति का मन भटक सकता है परन्तु ब्रह्मचर्य की साधना में मन एकाग्र हो जाता है तथा मन की चंचलता समाप्त हो जाती है।
काया के ब्रह्मचर्य के साथ वाचा का ब्रह्मचर्य भी आवश्यक है । वाणी के द्वारा कोई ऐसा वचन नहीं बोलना चाहिए, जिस से कलह उत्पन्न हो। ___जब काया से पाप नहीं होता तो वाणी से प्रायः हो जाता
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