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सत्य अंत में इसी नूतन वेष में राजा को रथ में खड़ा करके जनसमूह के साथ नगर में राजा की शोभा यात्रा निकाली गई । लोग दांतों तले अंगलि दबाने लगे परन्तु वे राजा के पीछे चले जा रहे थे। राजा गवाक्षों में खड़े स्त्री-पुरुषों, बालकों का अभिवादन शान से स्वीकार कर रहा था। आज आनन्द का पार न था। क्योंकि वह उस समय अदृश्य परिधान में बहुत ही सुन्दर नज़र आ रहा
था।
राजा की सवारी एक चौक में से हो कर गुज़री । अकस्मात् राजा ने वहां के एक मकान में से एक छोटे बच्चे की आवाज़ सुनी, वह कह रहा था। "पिता जी! राजा आज नग्न हो कर नगर में घूमने को क्यों निकला है ? क्या यह कोई विशेष विधि है ? जिस में से प्रत्येक राजा को गज़रना पड़ता हो।" बालक के चेहरे के भाव से राजा के मन में विचार आया कि मेरे साथ कहीं धोखा नहीं हआ। किसी ने ऐसा नहीं कहा। परन्तु यह बालक झूठ क्यों बोलेगा? तभो उस ने बालक के पिता को आवाज को सुना, “बेटे ! तू ठीक देख रहा है, ठीक ही कह रहा है, परन्तु राजा तो राजा है, उसे कौन समझाए ?
राजा समस्त स्थिति को भांप चुका था। वह समझ गया कि उस के साथ सरासर धोखा हुआ है।
राजा तुरन्त रथ से नीचे उतरा, उस ने तुरन्त वस्त्र मंगवा कर पहने तथा दोनों ठगों को गिरफ्तार कर लिया। ___ असत्य का आनन्द अद्भुत ही होता है जब कि सत्य को पचाना तथा सहना कठिन होता है । असत्य में रहने वाला भ्रांति में रहता है, मूरों के जगत में रहता है। उसी भ्रांति में मूर्खता में अलौकिक आनन्द लूटता है। परन्तु वह भूल जाता है कि जब सत्य उस के सामने आएगा तो वह उसे सहन ही न कर सकेगा।
वर्तमान में असत्य ही जीवन का सत्य बन चुका है । असत्य
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