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योग शास्त्र से भी कराए तथा असत्य का स्वयं त्याग करके दूसरे सत्यवादियों की अनुमोदना भी करे।
मन से असत्य का विचार भी न करे । वचन से असत्य न बोले तथा काया से झूठे इशारे न करे।
इम महाव्रत को स्थिर करने के लिए पांच भावनाओं का वर्णन शास्त्रों में आता है।
असत्य पांच कारणों से कहा जाता है । कोहा वा, लोहा वा माया वा हासा वा। (भाषणाच्च)
१. क्रोध से :-जब मानव क्रोध में आता है तो वह सत्यअसत्य, मन में जो कुछ भी अ ता है, बोलता जाता हैं । क्रोध में वह सत्य बात को न तो परख सकता है, न बोल सकता है । जब भी क्रोध आए, तब असत्य बोलने में कुछ विलम्ब कर देना चाहिए। बाद में ठंडे दिमाग से विचार करने पर व्यक्ति असत्य न कह कर सत्य बात भी कह देगा। अपनी गलती को भी मान लेगा। क्रोध के समय चित्त अस्थिर होता है । अतः तब किसी बात का भान भी नहीं रहता, न कर्त्तव्य का भान रहता है, न वाच्यावाच्य, का क्रोध में व्यक्ति निंदा भी कर देता है तथा आरोप भी लगा देता है।
२. लोभ से :--धन के लोभ से झूठ प्रायः बोला जाता है। रिश्वत आदि लेने के बाद, चोरो करने के बाद झूठ बोलना प्रायः देखा जाता है । अन्यथा पाप के पकड़े जाने का भय रहता हैं । झूठ बोल कर आप कुछ प्राप्त तो कर सकते है । परन्तु उस का उपयोग नहीं कर सकेंगे। वह वस्तु किसी भी कारण आप से दूर चली जाएगी । वह वस्तु झूठ से टिकेगी या पुण्य से ? व्यापारी तो दिन में सैंकड़ों झूठ बोलता है । रुपये की वस्तु के लिये जब ग्राहक १० रुपये देगा तो वह तुरन्त कहेगा कि १० रु० में तो यह
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