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सत्य
'The Truth and love are most powerful things in the world.'
धत्य तथा प्रेम संसार में सब से अधिक शक्तिशाली वस्तुएं.. है । सत्य से संसार में श्रेष्ठता प्राप्त होती है । प्रेम से जगत अपना ही दिखाई देता है ।
हरिश्चन्द्र ने सत्य के बल से ही विश्व में सत्यवादी होने का अलंकरण प्राप्त किया। सारा संसार बदल सकता है । सूर्य पश्चिम में उदित हो सकता है परन्तु सत्यवादी का सत्य विचलित नहीं हो सकता । वह सत्य को नहीं छुपाता है । न सत्य के सामने होने वाले आक्षेपों से घबराता है तथा न ही सत्य कहने में हिचकिचाहट का अनुभव करता है । सत्य ही उस के जीवन का, प्राणों का आधार होता है ।
महाभरत म द्रोण वध का कारण असत्य ही बना था, जब द्रोण - आचार्य को जीतना कठिन हो रहा था । द्रोणाचार्य ने शंकर से यह वरदान प्राप्त किया था कि अश्वत्थामा की मृत्युका समाचार सुने बिना वह न मरेगा। पांडवों ने योजना बना ली तथा युधिष्ठिर को इस कार्य के लिये तैयार किया गया कि वह युद्ध प्रांगण में कहेगा कि 'अश्वत्थामा हतो' अश्वत्थामा मर गया है । धर्मराज उर्फ युधिष्ठिर को असत्य बोलने का दोष भी न लगे इसलिए उन्होंने निर्णय किया कि इस के तुरन्त बाद नगाड़ा की ध्वनि में यह कह दिया जाए कि 'नरो वो कुंजरो वा' - अश्वत्थामा मर गया है परन्तु यह पता नहीं कि अश्वत्थामा नाम का हाथी मरा है या मनुष्य ।
'अश्वत्थामा हतो' शब्दों का श्रवण करते ही द्रोणाचार्य ने हथियार डाल दिये तथा अन्तिम समय में वन में पहुंचे परन्तु वहां भी द्रोणाचार्य को वास्तविकता का पता न चल जाए - यह सोचकर धृष्टद्युम्न ने वहां जा कर द्रोणाचार्य को मार डाला ।
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