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अहिंसा बड़ी वस्तु का लक्षण सदैव बहुत छोटा होता है । यहाँ पर जो बात की गई है वो ही बात आचार्य उमास्वाति ने भी कही थी। उन्होंने कहा तत्वार्थ सूत्र में--
प्रमत्त योगात् प्राण व्यपरोपणं हिंसा। प्रमाद के योग से किसी प्राणी के प्राणों का वध कर देना हिंसा है तथा उस के विपरीत अहिंसा है। किसी के प्राणों को मार देना, किसी को कष्ट पहुंचाना, किसी को दुःख देना उस का नाम हिंसा नहीं, परन्तु हिंसा को परिभाषा में उन्होंने एक विशेष शब्द का संयोजन किया, 'प्रमाद के योग से' । जो हिंसा प्रमाद के योग से होती है, उसे हिंसा के नाम से अभिहित करना चाहिए । जिस हिंसा में प्रमाद का योग नहीं, वह हिंसा भी हिंसा नहीं। प्रमाद क्या है ? प्रमाद के आठ भेद बताये गए हैं।
प्रमाद-अज्ञान, संशय. विपर्यय, रागद्वेष, अस्मृति (भूल जाना) और मन वचन काया की जो प्रवृत्ति-उस का नाम प्रमाद है। मन वचन काया की प्रतिकूल प्रवृत्ति प्रमाद बन ही जाती है।
जो हिंसा प्रमाद के योग से होती है वो प्रमाद वास्तव में क्या हैं ? यदि आप प्रमाद को समझ लेंगे तो आप हिंसा को भी समझ लेंगे। हिंसा को समझ लेंगे तो आप अहिंसा को भी धारण कर लेंगे।
आचार्य हेमचन्द्र सूरि महाराज ने कहा है कि मन, वचन, काया के अशुभ योगों से हिंसा होती हैं । आप का मन किस तरह से सोचता है ? आप की बाणी किस तरह से वचन का प्रयोग करती है ? और आप की काया किस तरह से अपने आप को प्रयुक्त करती है ? जिस तरह से वह प्रयोग करेगी उसी कारण से वह हिंसा या अहिंसा बन जाएगी।
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