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अहिंसा
अहिंसा सूनृतास्तेय ब्रह्मचर्यापरिग्रहाः ।
पंचभिः पंचभिर्युक्ता भावनाभिविमुक्सये ॥१८॥ अर्थ :-योग शास्त्र में कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य योग के साधन के रूप में ज्ञान दर्शन और चारित्र को बताते हुए चारित्र की परिभाषा करने के पश्चात् उस के भेदों का निरूपण करते हैं । उन के अनुसार चारित्र के पांच भेद हैं।
१. अहिंसा २. सत्य ३. अस्तेयं ४. ब्रह्मचर्य ५. अपरिग्रह ।
प्रत्येक महाव्रत की पांच भावनाएं जिन से महाव्रत दृढ़ होता है।
- सर्व प्रथम अहिंसा का स्वरूप बताते हुए उन का यह सुन्दर कथन है कि
न यत् प्रमाद योगेन जीवितव्यपरोपणम्।
प्रसाणां स्थावराणां च, तदहिंसा व्रतं मतं ॥२०॥ ___ अर्थ :-प्रमाद के योग से किसी के प्राणों को हानि न पहुंचाना-उस का नाम अहिंसा है । परिभाषा बहुत छोटी है।
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