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योग शास्त्र
[१७७ दिया यदि अब वह मृत्यु प्राप्त हो तो स्वर्ग में जाएगा। इतने में प्रसन्न चन्द्र संचित कर्मों की आलोचना करते हैं। उन्हें पश्चाताप होता है। सद्भावना का भाव जागत होता है। कर्म समाप्त होने प्रारम्भ हो जाते हैं तब पुनः श्रेणिक महाराजा ने भगवान् महावीर से पूछा तो भगवान महावीर ने कहा कि प्रसन्न चन्द्र को केवल ज्ञान हो जायेगा । तभी देवदुंदुभि बजती है अर्थात् मुनि को केवलज्ञान हो जाता है। मात्र एक अन्तर्महर्त में उन की भावना का विकास होता है। मन के विचारों के द्वारा क्या होता है ! यह आप समझ गए होंगे।
भावना भवनाशिणी।
भावना भववर्धनी। जैसी आप की भावना होगी बैसा ही फल होगा। भावना से संसार की वृद्धि भी हो सकती है तथा संसार भ्रमण कर्म भी हो सकता है । जैसी भावना होगी, बैसे ही फल मिलेगा। गो स्वामी तुलसीदास के शब्दों में
"कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,
जो जस काहि सो तस फल चाखा।" __ मन के विचारों पर बहुत कुछ आधारित है यदि आपके मन में विचार श्रेष्ठ हैं, तो संसार भी श्रेष्ठ है तथा यदि मन के विचार कलषित हैं तो संसार की कोई वस्तु दुर्गति में जाने से आप की रक्षा न कर पाएगी। प्रमाद क्या है ? सामान्य रूप से "आत्मा की जागति न होना अथवा विवेक न होना" इस का नाम प्रमाद है।
मानो आप चले जा रहे हैं। मार्ग में आप के पैर के नीचे आ कर कीड़ी मर गयी। क्योंकि आप ने चलने में विवेक नहीं रखा, आप नीचे देख कर नहीं चले, आप आराम से चले जा रहे थे । अतएव कीड़ी (निर्दोष प्राणी) मर गई । यदि आप ऊपर पंखी को देखते हुए जा रहे हो तथा इसी मध्य आप के पैरों तले
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