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अहिंस। उस गल्ती को सुधार कर ही दिया जा सकता है । Tit for tat. के सिद्धांत से कभी किसी को कुछ प्राप्त नहीं हुआ। अपने विरोधियों को भी क्षमादान देने वाले ऐतिहासिक महापुरुषों का जीवन कितना शांत होता है। हिंसा फैलाने वालों को भी सुधरने का अवसर देना चाहिए। यदि वे न सुधरे तो राष्ट्र तथा समाज को दण्ड व्यवस्था का प्रयोग करना अनिवार्य हो जाता है ।
समस्त विश्व से प्रेम तथा मैत्री विकसित करने के लिए पहले अपने घर से श्रीगणेश करो। फिर देखो कि प्रेम का अंकूर कैसे पल्लवित तथा पुष्पित होता है ?
___ एक व्यक्ति एक महात्मा के पास पहुंचा तथा बोला, महाराज ! मुझे संन्यासी बना दीजिए। महात्मा ने कहा कि क्या कारण है संन्यासी बनने का ? सन्यास धारण करना बहुत कठिन हैं । कहीं बाद में पारिवारिक जनों का मोह तो नहीं सताएगा ?
नहीं महाराज ! घर वालों से तो मैं वैसे ही परेशान हैं । प्रतिदिन उन से क्लेश होता है। उन के साथ तो मुझे न प्रेम ह, न मोह । उस का उत्तर था।
महात्मा ने प्रत्युत्तर में कहा कि, "तू अभी सन्यास के योग्य नहीं है। यहां पर तो समस्त प्राणी जगत से प्रेम करना पड़ता है, यहां पर आ कर प्रत्येक जीव को अपने समान समझना पड़ता है। तू तो परिवार से भी प्रेम न कर सका, समस्त विश्व से प्रेम क्या करेगा ? जा पहले अपने परिवार से प्रेम करना सोख ।
प्रेम का भान, अहिंसा की फल श्रुति है । अहिंसा के सद्भाव में प्रेम का अभाव नहीं हो सकता।
सर्वतः अहिंसा जो साधु की अहिंसा है-वह किसी अपराधी को भी दण्डित करने की आज्ञा नहीं देती। साधु को प्रत्येक स्थिति से क्षमाशील तथा अहिंसक बने रहने का उपदेश दिया
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