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योग शास्त्र गया है । परन्तु गृहस्थ की अपनी विवशताएं हैं । उसे विवशताओं का जीवन जीना पड़ता है। कभी-कभी परिस्थितिजन्य हिंसादि उस का कर्तव्य बन जाता है। परन्तु गहस्थ कभी भी निरपराध की हिंसा न करे । अपराधी का भी अपनी सुरक्षा के लिए प्रतिकार करे। कहीं ऐसा न हो कि अपराधी को देख कर वह इतने आवेश मैं आ जाए कि उस की हत्या करने का ही प्रयत्न करे। वह सुरक्षात्मक आक्रमण करे जिससे कि लाठी भी न टूटे एवं सांप भी मर जाए । अर्थात् हत्या तथा मुकदमा भी न हो तथा शत्रु भी परास्त हो जाए।
यहां पर एक प्रश्न होता है कि यदि आप के पड़ोस में कोई चोरी करने के लिए पिस्तौल लेकर आ जाए तो वहां आप का धर्म क्या कहता है ?
यह निश्चित है कि आप उस समय धर्म या शास्त्रों की आज्ञाओं के विषय में अधिक विचार ही न कर पाएंगे। आप उस समय की परितः बन रही सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक धार्मिक तथा व्यावहारिक स्थितियों का अध्ययन करेंगे।
यदि आप के उस व्यक्ति के साथ आप के व्यक्तिगत सम्बन्ध प्रगाढ़ हैं तो आप सुरक्षात्मक रीति से उस की कुछ सहायता करेंगे । अर्थात् इस चोर के सामने न आ कर उस पड़ोसी को सतर्क कर देंगे।
यदि आप का सम्बन्ध हार्दिक मित्रता का है तो आप प्राणों की बाजी लगा देंगे।
यदि आप की उस पड़ौसी से शत्रुता चल रही है तो आप - उस अवसर पर उपेक्षा करेंगे।
यदि आप स्वार्थी हैं तो मात्र स्वयं सतर्क (Alert) हो जाएंगे। पड़ोसी के लिए कुछ भी नहीं करेंगे।
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