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ज्ञान तथा क्रिया तज्ज्ञानमेव न भवति, यस्मिन्नुदिते विभाति रागगणः । तमस: कुतोऽस्ति शक्तिः दिनकर किरणाग्रतः स्थातुम् ॥ वह ज्ञान, ज्ञान ही नहीं होता, जिस के उदित होने पर राग आदि शेष रहें । क्या ज्ञान रूपी सूर्य के प्रकाश में (रागादि रूप) तारे कभी दिखाई दे सकते हैं ? क्या सूर्य के प्रकाश में अन्धकार टिक सकता है २७. बुद्धिर्यस्प बलं तस्य निर्बुद्धस्तु कुतो बलम्। ___ बुद्धिमान के पास ही बल होता है । बुद्धिहीन के पास बल कहाँ ?
तर्क-परन्तु कई बार तर्क शास्त्रादि विभिन्न शास्त्र पढने वाले संसार-भ्रमण करते रहते हैं। तथा मूर्ख व्यक्ति अपने शमदमादि गणों के बल पर संसार सागर से तिर जाते हैं। बुद्धिमान् होने के साथ आत्मोन्नति का क्या सम्बन्ध है ? कई बार स्वयं को कुशल तैराक मानने वाला नदी में डब जाता है तथा सामान्य तैराक तैर कर किनारे आ जाता है। शत बद्धि वाली लोमड़ी अनेक उपाय आजमाते हुए स्थान-स्थान पर तीव्र गत्या भागते हए शिकारी के जाल में या हिसक प्राणी के शिकंजे में फंस जाती है। जब कि एक बुद्धि वाली बिल्ली वृक्ष पर ही बैठ कर स्वयं को सुरक्षित कर लेती है । ज्ञान तथा बुद्धि सदैव बल शाली नहीं होते । कभी-कभी अल्पमति परन्तु प्रत्युत्पन्नमति एक दो उपायों से ही सफल हो जाते हैं, अतः उपाय के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। २८. सब में ज्ञानवंत बड़वीर, काटे सकल करम जंजीर ।
(विजय वल्लभ सूरि) तर्क-ज्ञानी कर्म की जंजीर को काट देता है, ज्ञान के बिना त्याग और तप, की छरी से क्या लाभ ? यह ठीक है कि त्यागी तपस्वी जितने कर्मों का क्षय करता है उस से अधिक कर्मों का
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