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ज्ञान तथा चारित्र दोनों ने सामञ्जस्य के बिना किसी कार्य की सिद्धि नहीं हो .. सकती।
एक अंधा तथा एक लंगड़ा एक जंगल में जा पहुंचे । जंगल में अग्नि ने सभी कुछ स्वाहा करना प्रारम्भ किया तो वे दोनों भी घबरा उठे । दोनों एक-एक कमी के कारण भागने से मजबूर थे। अंधा भागे तो कहां भागे ? लंगड़ा भागे तो कैसे भागे ? अन्ततः लंगड़े की आंख से काम लिया गया तथा अंधे की टांगों से काम लिया गया। प्रयोग पूर्ण सफल रहा। क्योंकि अन्धे के कन्धे पर बैठ कर लंगड़ा इंगित आदि से मार्ग दिखाता हुआ, अन्धे को सही मार्ग पर ले जा चुका था ।
कभी-कभी दोनों में से एक तत्त्व की अल्पता या महत्ता का ग्रहण तो हो सकता है परन्तु एक को सर्वथा छोड़ा नहीं जा सकता।
ज्ञानी क्रिया परः शांतः भावितात्मा जितेन्द्रिय। स्वयं तीर्थों भवांभोघेः परांस्तारयितुं क्षमः ॥
ज्ञानसार ज्ञानी क्रिया से युक्त हो कर शांत तथा वैराग्य से भाविक हो कर इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता हुआ स्वयं भी संसार सागर से तिर जाता है तथा दूसरों को भी तीर्ण कर देता है ।
येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मर्त्यलोके भुवि भारभूतः
मनुष्य रूपेण मगाचरंति ॥ नीति शतक जो मनुष्य हो कर भी विद्या तथा दान, ज्ञान, शील आदि गुणों को धारण नहीं करते वे मनुष्य लोक में भारभूत हैं तथा मृग के समान हैं।
चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणि हु जंतुणो। माणुस्सुतं, सुइ सद्धा, संजमम्मि य वोरिअं॥
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