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योग शास्त्र
[१५६ से उसे गधे की तरह कोई लाभ नहीं उठा पाता। ४२. येनाऽहं अमृता न स्यां, तेनाहं कि कूर्याम् ।
मैत्रेयी ने साधु सन्यासी बन रहे अपने पति से कहा था कि उस सामान का मैं क्या करूंगी, जिस से मैं अमर नहीं हो सकती।
तर्क-उस का आशय था, कि ज्ञान का सामान प्राप्त करने से मैं अमर हो सकूँगी और इसी लिए मैं आप के साथ संन्यास को धारण करूंगी। ४३. यः श्रूयात् गौतमी वाचं, न स: शांतिमवाप्नयाद ।
जब राम चन्द्र जी वनवास के लिए गए थे, तब उन्हें वन में न्याय दर्शन के प्रणेता गौतम ऋषि मिले। श्री राम ने गौतम से वन का मार्ग पूछा । गौतम ऋषि बोले "राम ! आप को वन में जाना है ? कैसे वन में जाना है ? वनों के कई प्रकार हैं। किस प्रकार के वन में आप जाना चाहते हैं। वन छोटे भी होते हैं, बड़े भी होते हैं । कुछ वन जाति सहित होते हैं, कुछ भारतवर्ष में अपने जैसा दूसरा वन न होने के कारण एक ही होते हैं-उन में जाति नहीं रहती, क्योंकि जाति एक में रह नहीं सकती। वनत्वावच्छिन्न वन में या वनत्वधर्मावच्छेदक तथा वच्छिन्न वन में आप को जाना है ? ___राम उन की न्याय (Logic) की भाषा सुन कर कुपित हो उठे, तथा बोले, "ऋषिराज! मैंने तुम से सामान्य प्रश्न पूछा है । परन्तु तुम उल्टे सीधे प्रश्न करके मुझे परेशान कर रहे हो । तुम्हारी कठिन तथा कर्कश भाषा से एवं निरर्थक तर्कों से मैं परेशान हो गया हूं।" । तब राम ने शाप दिया 'य श्रूयात्......। ___ "जो गौतम ऋषि की वाणी को सुनेगा, वह शांति को प्राप्त न कर सकेगा।"
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