________________
१४८]
ज्ञान तथा क्रिया ___ तर्क–धन आदि की अपेक्षा ज्ञान ही दुर्लभ है, क्योंकि वह बिना क्षयोपशम के प्राप्त नहीं होता, परन्तु क्या चारित्र दुर्लभ नहीं, जो चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम के अभाव में प्राप्त नहीं हो सकता ? ८. ज्ञानी श्वासोश्वास में करे कर्म का क्षय। ___ अज्ञानी भवकोटि लग, कर्म खपावे तेह ॥
तर्क-क्या मात्र ज्ञान से ही कर्मों का क्षय हो सकता है ? यदि ऐसा है, तो ज्ञानवादियों की मक्ति शीघ्र क्यों नहीं हो जाती ? १४ पूर्व का ज्ञानी भी प्रमाद के कारण, ज्ञान विस्मरण होने से (क्रिया चारित्र में अरुचि होने से) नरक निगोद में क्यों चला जाता है ? ६. यस्मात् क्रियाः प्रतिफलंति न भाव शून्याः ।
भाव (ज्ञान) के बिना क्रियाएं फल नहीं देतीं।
तर्क-भोजन से तृप्ति होती है-इस ज्ञान के बिना भी यदि भोजन किया जाए, तो क्या क्रिया फल (तृप्ति) नहीं मिलता ? विष से मृत्यु होती है-इस ज्ञान के बिना विष का भक्षण किया जाए, तो क्या इस भक्षण क्रिया का फल मृत्यु नहीं होता ? ज्ञान रहित मात्र क्रिया भी शुभोपयोगी होने से शुभ फल क्यों नहीं दे सकती ? १०. क्रिया देश आराधक कही, सर्व आराधक ज्ञान ।
क्रिया से अल्प आराधना होती है, जब कि ज्ञान से सम्पूर्ण आराधना होती है।
तर्क-क्या अकेले ज्ञान से ही सम्पूर्ण आराधना होती है ? यदि ऐसा होता तो आचार्य हेमचन्द्र तथा यशोविजय जैसे महान ज्ञानी, चारित्र की साधना को महत्व क्यों देते ? उन का ज्ञान जितना अधिक था, उन का चारित्र (क्रिया) उतना ही शुद्ध था।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org