________________
गाथा - ९
(परमात्मपद में) रागादि मल पूर्णतः छूट गये। पहले थे... समझ में आया ? उन्हें पूर्णत: (छोड़ा) 'विहूयरयमला' आता है या नहीं ? लोगस्स में विहूयरयमला आता है। आ कर्म के रजकण को और पुण्य-पाप के मलिनभाव को परमात्मा ने विहूय अर्थात् छोड़ा है, उन्हें परमात्मा, उन्हें सिद्ध भगवान कहा जाता है । उन्हें अरहन्त भी कहा जाता है ।
५६
'णिम्मलु णिक्कलु' जिन्हें कल नहीं (अर्थात् ) शरीर नहीं । लो ! यहाँ तो परमात्मा लिये - शरीर रहित । जिन्हें शरीर नहीं, अकेला आत्माशरीर है, अकेला आत्मा का शरीर रहा.... यह शरीर धूल का नहीं रहा, उन्हें परमात्मा कहा जाता है। लो ! कोई कहता है, वहाँ भी अभी शरीर होता है। वहाँ 'अभी भगवान की सेवा चाकरी करें। हैं ? बैकुण्ठ में जाये तो सेवाचाकरी करे। ऐसे के ऐसे हैं उसके भगवान । यहाँ परोसा हो और उसके साधु को बहुत लड्डू दिये हों (तो) वहाँ भी उसे लड्डू मिलते हैं । वहाँ भी लड्डू और थालियाँ, वहाँ भी नौकरी और चाकर, वह तो संसार रहा, वह का वह ।
|
परमात्मा तो उसे कहते हैं कि जिसे शरीर नहीं, जिसे राग नहीं। सिद्ध परमात्मा शुद्ध अभेद एक व्याख्या की है। वे शुद्ध हैं। अकेले भगवान हैं, उन्हें अशुद्धता बिल्कुल नहीं है। दो पना, उसे अशुद्धता और कर्म आदि कुछ नहीं है । वह नकार किया था । यह शुद्ध एक है, ऐसा ।
'जिणु' जिसने आत्मा के सर्व शत्रुओं को जीत लिया.... लो, जिसने सभी शत्रु पहले थे और जीता, और परमात्मा वीतराग हुए, उन्हें परमात्मा और परमेश्वर कहते हैं। लो! यह णमो सिद्धाणं की व्याख्या चलती है। सिद्ध भगवान ऐसे हैं, उन्हें परमात्मा कहते हैं। बाकी कोई जगत का करता है और अमुक है और अमुक है, वह कोई परमेश्वर - वरमेश्वर ऐसा कोई है ही नहीं। शत्रुओं को जीत लिया.....
'विण्ह' (विष्णु) । ऐसे सिद्ध भगवान को विष्णु कहते हैं । वे विष्णु जगत को रचते हैं, वे विष्णु नहीं। ज्ञान की अपेक्षा से सर्व लोकालोक में व्याप्ते हैं, उसे विष्णु कहते हैं। भगवान परमात्मा एक समय के ज्ञान में तीन काल तीन लोक ज्ञातारूप से जानते हैं, एक समय में युगपत् जानते हैं, एक समय में पूरा जानते हैं, उसे परमात्मा कहते हैं। दूसरे कहते हैं कि वे अनियत को जानते हैं । अनियत को जानते हैं अनियतपने, ऐसा। पढ़ा है