Book Title: Yogsara Pravachan Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 438
________________ ४३८ गाथा-६२ मुमुक्षु - गली-कूची नहीं होती। उत्तर – गली कूचे नहीं, मार्ग ही दूसरे प्रकार का होता है। जहाँ दिगविजय रहता हो, वहाँ बंगले में अन्दर गया, वहाँ बड़ा बंगला... ओ...हो... ! देखो तो मार्ग ही सब ऐसा होता है। बड़ा बंगला हो उसका रास्ता (अलग प्रकार का होता है) । चक्रवर्ती के बंगले जाना हो तो उसका रास्ता ही सब (अलग प्रकार का होता है)। इसी प्रकार दरवाजे में प्रवेश करते ही चारों ओर उपवन होते हैं - ऐसा कहते हैं। समझ में आया? ___ मनोहर उपवनों में रुकता है.... लो! विश्रान्ति लेना पड़े.... थोड़ा लम्बा मार्ग (होवे) तो बैठे, शीतल जल पीता है.... बड़े राजा के बंगले बड़े, दो-दो, पाँच-पाँच, दस-दस, बीस-बीस गाँव में (होते हैं)। 'जापान' में बड़ा दरबार है न! बहुत बड़ा है, बहुत बड़ा। कितने मील में तो उसका बड़ा बंगला है। जापान कहा न? राजा की बात सुनी थी, कहीं लिखी हो, सुनी हो.... दिमाग में किसे याद होती है ? समझ में आया? पौष्टिक फल खाता है.... ऐसे फल हों, वे तोडकर खाता है। समझे न? लो. ठीक! उसी प्रकार मोक्ष का अर्थी जीव निर्वाण पहुँचने के लिए आत्मा के अनुभव की सुखदायक सड़क पर चलता है। आत्मा के अनुभवरूपी सुखदायक सड़क पर चलता है, वहाँ दुःख नहीं है। आहा...हा...! मोक्षरूपी महल में पहुंचने से पहले भी सुखदायक सड़क पर चलता है। अन्तर के ज्ञानानन्द की एकाग्रता द्वारा सुखरूपी सड़क पर चलता है। समझ में आया? ऐसा फल है। लो ! (फिर) तत्त्वानुशासन का कुछ कहा है। यही कहा है। मुमुक्षु - वस्तु में तो मिठास है परन्तु उसके वर्णन में भी मिठास है। उत्तर – वर्णन में, वाणी में मिठास है, वह तो अमृत कहलाता है, उसको (आत्मा को) लेकर। समझ में आया? शक्कर की थैली हो, वह शक्कर में तोली जाती है। शक्कर होती है न? बड़ी-बड़ी डली ! चार-चार मण के (वारदान होते हैं।) शक्कर का वारदान शक्कर में तुलता है। ढाई सेर का वारदान शक्कर में गिना जाता है। रुपये की थैली, यह रुपये की थैली रुपये में तुलती है। पहले रुपये की थैलियाँ भरती थीं, वह रुपये पहले नगद थे न! थैलियों की थैली भरते 'सायला' का सुना था न ! सायला का नहीं? सायला है न,

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