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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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ऐसा सूर्य नहीं है। कर्म से कुछ पकड़ा जाये ऐसा नहीं है। राग के विकल्प से पूरा आत्मा ग्रसित हो जाये – ऐसा नहीं है। कहो, समझ में आया? चैतन्यसूर्य भगवान पर से ग्रसित हो ऐसा नहीं है। स्वयं परमानन्दमय है। जो इस आत्मसूर्य का दर्शन करता है. उसे भी यह आनन्द देता है। जो इसे देखे उसे आनन्द दे – ऐसा है। यह कहते हैं। जो इसे देखे, उसे आनन्द दे। कहो समझ में आया? आया था न? नमः समयसारायः कलश टीका, नहीं? ज्ञान और आनन्द का दातार है। स्वयं शुद्धात्मा ज्ञान और आनन्द का दातार है। अशुद्ध आत्मा और पुद्गल वे कोई ज्ञानदाता इसमें नहीं है। पर का ज्ञान, उसमें ज्ञान नहीं है। पर में सुख नहीं है – पहले (कलश में) आया है। ज्ञान और आनन्द का वह दातार है, उसे जाननेवाले को आनन्द दे, उसे जाननेवाले को आनन्द दे। समझ में आया?
वह सदा निरावरण है। उसे कभी आवरण नहीं है। एक नियमित स्वक्षेत्र में.... रहनेवाला है। यह सूर्य तो ऐसे से ऐसा उल्टा-सुल्टा घूमता है – ऐसा कहते हैं। सबेरे उगे, ऐसा फिरे... यह तो नियमित असंख्य प्रदेश में विराजमान है। सदा अपना क्षेत्र इतना रहे, यह शरीर का क्षेत्र तो बदलता है। नियमित अनादि-अनन्त असंख्य प्रदेश में विराजमान है, इसका क्षेत्र कभी नहीं बदलता। देह में रहने पर भी, देह के आकाररूप होने पर भी स्वयं अपना आकार नहीं छोड़ता, अपने आकार में रहता है।
अब, दूध-दही की उपमा (दी है)। पाठ में पहले दही-दूध और घी ऐसा रखा है। ये तीन होकर दृष्टान्त एक है, हाँ! तीन दृष्टान्त नहीं; तीन होकर एक है। दूध-दही और घी। आत्मा के दूध जैसे शुद्धस्वभाव का मनन करने से आत्मा की भावना दृढ़ होती है। जैसे दूध में से दही होता है न? ऐसे भगवान दूध के समान है, उसका एकाग्र ध्यान करने से उसे दही की मिठास प्रगट होती है और उसमें से जमकर घी होता है। कहो समझ में आया?
मुमुक्षु - दृष्टान्त में से निकले तो अच्छा....
उत्तर – दृष्टान्त में से क्या निकले? निहालभाई ! यह तुम्हारे भाई का लड़का है, हाँ! ऐसे दृष्टान्त में से वह हाथ आ जाए.... दृष्टान्त तो उसके लिए है। दृष्टान्त, दृष्टान्त के लिए नहीं है।