Book Title: Yogsara Pravachan Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 419
________________ योगसार प्रवचन ( भाग - १ ) करे । केवल एक अपने ही शुद्ध अशरीरी आत्मा को .... एक शरीररहित आत्मा को, शरीर प्रमाण विराजित..... शरीर प्रमाण रहा हुआ (अर्थात् ) इतने क्षेत्र में रहा हुआ ऐसा कहते हैं। बड़ा महान है, इसलिए बड़े क्षेत्र में रहा है - ऐसा नहीं । बड़ा है भाव से; क्षेत्र से बड़ा, इसलिए बड़ा है - ऐसा नहीं है। ऐसा अन्तर सूक्ष्म भेदविज्ञान की दृष्टि, राग से रहित भिन्न देखने का उद्यम करता है । ४१९ अन्तर्मुख में जाने का बारम्बार उपाय करे। राग से, संयोग से, निमित्त से, आँखें मूँद करके.... विकल्प से आँखें मूँद कर... समझ में आया ? यह (जड़) आँखें मूँदने से क्या हुआ? यह तो वैसे भी मुँदित है, मर जाए तब ऐसे मुँद जाती है। समझ में आया ? यह तो विकल्प की वृत्तियों को मूँद कर अन्दर निर्विकल्प भगवान आत्मा में टकटकी लगाकर उसमें एकाग्र होना, यह अभ्यन्तर मोक्ष का उपाय है। कहो, समझ में आया ? यह अभ्यन्तर मोक्ष का उपाय है, बाहर है नहीं । प्रवचनसार में कहा है न ? बाह्य सामग्री किसलिए ढूँढ़ने जाता है ? तेरा सब साधन अन्दर में पड़ा है ( प्रवचनसार गाथा १६) । आहा... हा.. ! परन्तु मनुष्य को कुछ... कुछ... कुछ... सहारा, व्यवहार यह हो, यह हो, यह हो... और जहाँ व्यवहार की बात आवे, वहाँ सहायरूप है, व्यवहार आलम्बनरूप है, इसलिए भगवान ने बहुत कहा है। देखो, कहा है या नहीं ? कहा क्या है ? परन्तु उसका फल क्या कहा ? वहीं का वहीं रहे तो उसका फल संसार है। समझ में आया ? एकाकी अपने आत्मा के गुणों का चिन्तवन करना, उसे ही आत्मा की भावना कहते हैं । भावना करते-करते जब एकाएक मन स्थिर होगा, यही आत्मिक अनुभूति ध्यानाग्नि है । लो, आत्मा का अनुभव ध्यान की अग्नि है, ज्वाला है, वह कर्म ईंधन को जलाती है । आत्मा को स्वर्ण समान शुद्ध बनायेगी। सोना होता है न ? उसमें ताँबे की लालिमा होती है या नहीं ? फूँक-फूँककर अग्नि से उजला करते हैं न? वैसे भगवान आत्मा में रागादि मैल (है)। उसे स्वरूप के ध्यान की फूँक मारते-मारते आत्मा को कुन्दन समान शुद्ध करे । अन्तरध्यान करे, वह उसकी अन्तरक्रिया है । आहा... हा...! समझ में आया? व्यवहारमोक्षमार्ग, वह मोक्षमार्ग नहीं है - ऐसा कहते हैं । निश्चयस्वरूप में एकाग्र होना, वही इसका मोक्ष का मार्ग है, वह अभ्यन्तर स्वयं के पास है, जरा भी दूर

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