Book Title: Yogsara Pravachan Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 398
________________ ३९८ गाथा - ५७ मुमुक्षु - देखा हो तब ऐसा कहे कि अनुपम है, फिर उपमा तो देते हैं। उत्तर - उसे वास्तव में उपमा नहीं है। यह तो दृष्टान्त है, यह उपमा नहीं है। यह तो दृष्टान्त है कि इस प्रकार से यह जैसा है, ऐसी चीज ऐसी अलौकिक है, ऐसा । समझ में आया? ठीक कहते हैं यह, बीच में लकड़ा (विपरीतता) डालते हैं, हाँ! मुमुक्षु - वहाँ नौ दृष्टान्त.... उत्तर – नौ क्या अनन्त दृष्टान्त हैं । जितने जगत् में उत्तम - उत्तम दृष्टान्त होते हैं, - वे सब आत्मा को लागू पड़ते हैं । दृष्टान्तों का क्या ? कहो, समझ में आया ? जैसे चाँदी अपनी सफेदाई को कभी नहीं छोड़ती; उसी प्रकार भगवान आत्मा अपनी निर्मलता की सफेदी, वीतरागता की सफेदी, निर्दोष आनन्द की सफेदी कभी नहीं छोड़ता। आहा...हा... ! ज्ञानी आत्मारूपी चाँदी का सदा व्यवहार करता है .... लो ! वह चाँदी का व्यापार करते हैं न? चाँदी के व्यापारी नहीं कहते ? वह चाँदी का व्यापारी है। यहाँ कहते हैं, ज्ञानी आत्मारूपी चाँदी का सदा व्यापार करता है । यह वीतरागता की सफेदाई को प्रगट करता है । आहा... हा... ! चाँदी का व्यापारी है, नहीं कहते ? यह सोने का व्यापारी है, यह रत्न का व्यापारी है । झवेरी कहते हैं न ? अपने वे मूलचन्दजी आते हैं, वे चाँदी के व्यापारी हैं । कहते हैं, चाँदी का व्यापार.... भगवान आत्मा तो सदा चाँदी का व्यापार, वीतरागता की सफेदाई से भरपूर तत्त्व, उस वीतरागता की सफेदी को प्रगट करने का ही ज्ञानी का व्यापार-धन्धा है । कहो, यह राग-वाग, पुण्य-पाप करना, यह उसका धन्धा नहीं है ऐसा कहते हैं । समझ में आया ? आहा... हा... ! आत्मा के अन्दर ही रमणता करता है, वह कभी परमानन्दरूपी धन से शून्य नहीं होता । लो, चाँदी के साथ कहा । समझे न ? - आठवाँ स्फटिकमणि का दृष्टान्त - स्फटिक मणि के समान निर्मल और परिणमनशील है । निर्मल और परिणमनशील इतनी, दो उपमा लेना, बाकी बहुत डाला है। जैसे स्फटिकमणि लाल, पीली, नीली वस्तु के सम्पर्क से लाल, पीले-नीले रंगरूप परिणमन करती है तो भी अपनी निर्मलता को खो नहीं बैठती..... यह अवस्था में स्फटिक का लाल आदि रंग दिखता है, तथापि वह स्फटिकपने की स्वच्छता

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