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गाथा-२०
उत्तर – हैं ? पूरा कहाँ है और कहाँ मशगुल हुआ? – इसकी इसे खबर नहीं है। आहा...हा...!
मोक्खह कारण णिच्छइ एऊ देखो! क्या कहते हैं? मोक्ष का साधन निश्चयनय से.... यही मानो। दूसरा मोक्ष का साधन कोई नहीं है। यह वीतरागस्वभाव वीतरागता, परमात्मा का, सिद्ध भगवान का, अरहन्त का है – ऐसा ही मेरा स्वभाव है। ऐसा अन्तर में ध्यान करके, उसमें एकाकार होना ही मोक्ष का साधन है; दूसरा कोई मोक्ष का साधन नहीं है। कहो, मोक्षस्वरूप भी स्वयं और उसके साधन के स्वभावरूप होना, वह भी स्वयं । आहा...हा...!
__ यहाँ तो मोक्खह कारण णिच्छइ एऊ देखो! कारण यह एक ही दिया। दूसरा व्यवहाररत्नत्रय मोक्ष का कारण है, निमित्त मोक्ष का कारण है और गुरु मोक्ष के कारण में है - यह सब यहाँ तो झकझोर कर निकाल दिया है, हैं ?
मुमुक्षु - होवे वह निकाले न? है अवश्य न? उत्तर – था न, दूसरा नहीं? उसके घर रहा, यहाँ कहाँ है ?
यहाँ तो परमात्मा और आत्मा को अलग नहीं जानना अर्थात् सर्वज्ञ वीतरागी पर्यायवाली पूर्ण परमात्मा है, मैं भी सर्वज्ञ पर्याय भले प्रगट नहीं परन्तु सर्वज्ञ पर्याय प्रगट हो – ऐसी मेरी ताकत है, ऐसा मैं वीतरागस्वरूप हूँ। उसके आश्रय से प्रगट हुई जो दृष्टि, ज्ञान और स्थिरता, वह स्वरूप का साधन है, मोक्ष का साधन है; बीच में राग-वाग आवे वह साधन-फाधन नहीं है। आहा...हा...! वीतरागभाव से आत्मा को देखना, जानना, ज्ञाता-दृष्टारूप जानना और देखना, यही मोक्ष का साधन है। रागवाला और राग का कर्ता और मैंने व्यवहार किया, व्यवहार से साधन हुआ – वह मोक्ष का साधन नहीं है।
मुमुक्षु - बड़ा वर्णन करके बड़ा बना दिया।
उत्तर - वर्णन करके नहीं, है ऐसा वर्णन किया। ऐसा बड़ा है, उसे वाणी में वर्णन किया। उस वाणी में पूरा कहाँ आता था? आहा...हा...! उसकी महिमा तो वह जाने, तब जाने। जाने, वह माने और माने वह उसमें से वापस हटे नहीं। समझ में आया? कहो, समझ में आया या नहीं? मनहरभाई! वहाँ सूरत-वूरत में कुछ समझ में आये वैसा नहीं है। वहाँ