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गाथा-४०
तो स्वयं जानता है। जहाँ हो वहाँ मेरा ज्ञान, जहाँ हो वहाँ मेरा ज्ञान । हैं ? स्वयं का ज्ञान दिखता है - ऐसा कहते हैं।
मेरा ज्ञान आया था या नहीं? वह पुस्तक नहीं, नहीं? मेरा ज्ञान कहा था न? हैं ? अभी रख दी लगती है। सेठिया का है न? मेरा ज्ञान, मेरा ज्ञान, वहाँ कहा है न? हैं? लड़का मर गया, लड़के का लड़का (मर गया).... मुर्दा पड़ा था, उसकी माँ को कहे, क्या है ? मैं गायन बनाऊँ वह बोल.... रोने का क्या? इसमें किसका रोना लगे? रोनेवाला नहीं रे रहनेवाला रे..... रोनेवाला रहनेवाला नहीं है ! किसकी लगाना इसमें? समझ में आया? 'सेठिया' है, हाँ! सरदारशहर का गृहस्थ व्यक्ति है। अन्तर अरहन्त ध्याये, सम्यक्सूर्य उगसे जी.... मेरा ज्ञान... मेरा ज्ञान... यह बहिनें रोवे तब कहे न? मेरा पेट... मेरा पेट... । अब पेट रख न, पेट कब तेरा था? लड़का मर जाये तो कहे मेरा पेट.... मेरा (पेट)। ऐसा, स्त्रियाँ बोलती हैं। बोलती हैं - ऐसा थोड़ा-थोड़ा सुना है। ऐसी उनकी मथने की सब रीति होती है, मूढ़ की।
यहाँ कहते हैं कि परन्तु 'गुणी जन सम्यक् सिद्ध प्रभु नित ध्याये, चैतन्य सूर्य उगसे जी, म्हारा ज्ञान....' मेरा ज्ञान... मेरा ज्ञान... मेरा ज्ञान... रतनलालजी! दीपचन्द सेठिया है न? दीपचन्द सेठिया, सरदारशहर का। पूरे दिन उनके घर में ऐसी ही बातें करते हैं । गृहस्थ व्यक्ति है, पाँच-सात लाख रुपये। गृहस्थ व्यक्ति.... बस! यह सबको (कहे) मर गया लड़का, लड़के का लड़का... घर में मुर्दा पड़ा है, बड़ी बिल्डिंग है, पैसावाला है, लड़के की बहू से कहे क्या करना है? रोना है? नहीं, बापूजी! आप कहो, फिर गीत बनाया। मुर्दे के पास यह गीत बोले.... फिर सगे-सम्बन्धी सभी लोग आये सभी साथ में गीत बोलने लगे.... रोना किसका? इसमें किसका रोना? समझ में आया? यह गीत उस दिन वहाँ बोले थे, हाँ! हैं?
'गुणीजन अर्थ ग्राही उपयोग, गुणीजन.....' पदार्थ जो है, उसे जाननेवाला मेरा उपयोग है, मेरा आत्मा अर्थ / वस्तु जो है, उसे जाननेवाला मेरा उपयोग है। मेरी चीज ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा, उसे ग्रहण करनेवाला मेरा उपयोग है। 'चैतन्य निज प्राण छे जी....' समझ में आया? 'गुणीजन ज्ञायक ज्योत जगाय, देखो तो शान्ति जीव में, जी'