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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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भरा है, अर्थात् जिसने सर्वज्ञस्वभाव भरा है, वह एक ही यह आत्मा है। समझ में आया? यह क्या कहा? वे सब हैं, उन्हें जाननेवाला ज्ञान, पर्याय का है परन्तु उसे पूरा आत्मा जानने की ताकत जिसमें सर्वज्ञपद पड़ा है, वह सबको जानता है। वे (सब) अचेतन हैं परन्तु उन्हें जाने, वह ज्ञान की दशा है परन्तु वह ज्ञानदशा, ऐसी अनन्त ज्ञानदशा का चैतन्य पिण्ड अकेला आत्मा है, वह सचेतन, सचेतन सर्वज्ञ आत्मा है, उसे तू आत्मा जान।
दूसरा क्या लक्ष्य में आया कि – आत्मा के अतिरिक्त जो समस्त हैं, दूसरे सब सचेतन, अन्य आत्माएँ भले दूसरे हों परन्तु तेरे लिए सचेतन नहीं हैं। तेरे अतिरिक्त के सब यह चैतन्य उनमें कहीं नहीं है। समझ में आया? यह एक चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा, समस्त जीव को चैतन्यस्वरूप को देखो तो भी वह जीव जाननेवाला सर्वज्ञस्वभाव है - ऐसा इसे दृष्टि में आयेगा। सबमें ज्ञान नहीं है और सबका जिसे ज्ञान है – ऐसा आत्मा सर्वज्ञ स्वभावी है। क्या कहा? सबमें ज्ञान नहीं है... पाँच जड़, परमाणु, शरीर, यह तो सब मिट्टी, धूल है। इनमें सबमें – अनन्त परमाणु, अनन्त आत्मा की संख्या से अनन्त परमाणु (है).... असंख्य कालाणु इन सबमें ज्ञान नहीं है। तब इन सबको जाननेवाला है, वह चैतन्यस्वभावी, सर्वज्ञस्वभावी आत्मा है, उसे आत्मा जान – ऐसा कहते हैं। आहा...हा...! समझ में आया? एक सचेतन....सारु शब्द लिखा है न फिर? सारभूत परमपदार्थ भगवान आत्मा है। आहा...हा...! समझ में आया? यह तो भाई! योगसार है। स्वरूप की एकता करना, उसका सार स्वरूप क्या – उसकी बात है ? समझ में आया?
भगवान आत्मा कहते हैं, कि जो इसमें चैतन्यस्वभाव, चैतन्यस्वभाव है, वह सार है। वापस.... वह सार है। समझ में आया? दूसरे में वह कुछ है नहीं। अनन्त परमाणु, पुद्गल जड़, मिट्टी, धूल, अनन्त गुणे पदार्थ एक जीव से जड़ बहुत-अनन्तगुने.... अनन्तगुने.... अनन्तगुने तीन काल के समय अनन्तगुने... यह सब जड़ है। समझ में आया? क्षेत्र, आकाश, सब जड़ है। बड़ा-बड़ा लम्बा क्षेत्र... काल ऐसा लम्बा, जड़ है। पुद्गल की संख्या अनन्त, वह सब जड़ है। ये सब जड़ हैं, अचेतन हैं, तब इन सब जड़ को, तीन काल के कालरूपी जड़ को और अनन्त आकाश ऐसे जड़ को जाननेवाला यह चैतन्य, वह सर्वज्ञ सारस्वरूप है। समझ में आया?