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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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दूसरा था, उसके पहले तीसरा था, उसके पहले चौथा.... ऐसे अनन्त काल के अनन्त शरीर आये और गये, आये और गये... धूल... हैरान-हैरान हो गया। ऐ...ई... आशीष! यदि दो घण्टे ऐसे मौन रह गया और कछ बोले नहीं और यदि पडखा नहीं फिरे तो हाय.... हाय! (करने लगता है)। समझ में आया? अरे...रे... ! कोई पड़खा फिरता नहीं अरे! मुझे कहीं हर्ष (सुख) नहीं, हाँ! अकुलाहट... अकुलाहट.... (होती है)। अरे... ! परन्तु किसकी अकुलाहट तुझे ? अकुलाहट तो तेरे राग की अकुलाहट है, पड़खा नहीं फिरने की नहीं, ऐ... मोहनभाई! क्या होगा? पड़खा फिरता नहीं, (दर्द का) वेग आता है, ऐसा करें तो ऐसा है। क्या है परन्तु वह तो जड़ है। जड़ को कुछ व्यवस्थित कर दे न? बड़ा बड़कमदार (होशियार) है न?
मुमुक्षु - बड़कमदार अर्थात?
उत्तर – होशियार । ऐसा कहे हम किसी का कर देते हैं । कर न, तेरी कमर का। ऐ... यहाँ से ऐसा हुआ, क्या हुआ? क्या होता है? – पता नहीं पड़ता – ऐसा कहता है। ऐसा करने जायें तो ऐसा हो तो ऐसा करने जायें तो ऐसा हो... करे कौन? उस जड़ की अवस्था के सन्मुख के अभिमान के परिणाम, वह बंध का कारण है। आहा...हा...! समझ में आया? तुझे पता नहीं है।
भगवान आत्मा चिदानन्द की मूर्ति प्रभु है। उसके सन्मुख के परिणाम ही तुझे एक हितकर और कल्याण का कारण है। उसके अतिरिक्त कोई हितकर, कल्याण का कारण नहीं है। फिर हमारे धन्धा कब करना यह? कब कर सकता है? हैं ? चिमनभाई! यह क्या कहा? यह सब क्या कहा? होशियार मनुष्य हो तो पाँच हजार-दस हजार (कमा) ले, लो! है? हमारे छोटाभाई है न? कहाँ गये? भावनगर गये? वे छोटाभाई कहते थे। अपने को कहाँ पता, अपने को कुछ पता नहीं पड़ता, छोटाभाई कहते हैं ये दोनों लोग पाँच हजार, आठ हजार निभाये, लो दूसरे को बीस हजार होता है और इन्हें बारह हजार, दोनों फिर होशियार बहुत ! ऐसा हुआ होगा या नहीं? धूल में भी नहीं हुआ.... वह तो होना था, वह हुआ। चिमनभाई! क्या कहते हैं ? लो! तुम्हारा यह मकान अभी बीस हजार की कीमत का गिना जाता है। पूछा तब शान्तिभाई कहते हैं, बारह हजार । लो! शान्तिभाई कहते हैं, बारह