Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 11
________________ दो शब्द स्वर्गीय श्री मोहनलाजी बॉठिया तथा श्रीचन्दजी चोरडिया ने जैनागम एवं वाङ्मय के तलस्पशी गम्भीर अध्ययन कर आधुनिक दशमलव प्रणाली के आधार पर अलग-अलग अनेक विषयों पर कोश प्रकाशित करने की परिकल्पना की ओर उसको मूर्त रूप देने के लिए जैन दर्शन समिति की स्थापना महावीर जयन्ती के दिन सन् १६६६ के दिन की गई। कलकत्ता युनिवर्सिटी के भाषा विज्ञान के प्राध्यापक डा. सत्यरंजन बनीं का स्व० मोहनलालजी बॉठिया के साथ घर पर १६६० में प्रथम परिचय हुआ । उस समय भारत के विभिन्न नगरों लाडD आदि में जैन दर्शन परिषद होती थी। प्रोग्राम सत्यरंजन बनर्जी के साथ मिलजुलकर बनाया करते थे। कालान्तर-तत्पश्चात् सन् १९६६ के महावीर जयंती के अवसर पर डा. बनर्जी व श्रीचन्द चोरडिया के परामर्शसे जैन दर्शन समिति की स्थापना की। जिसकी फल परिणति विभिन्न कोश परिणति है । यह संस्था स्व० मोहनलाल जी बाँठिया एवं श्रीचन्द चोरडिया द्वारा निर्मित विषयों पर कोश प्रकाशन का कार्य कर रही है। इसके द्वारा निम्नलिखित कोश प्रकाशित है जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : (१) लेश्या कोश-प्रथम पुष्प-लेश्या अध्यवसाय का बेरोमेटर है। इस कोश में छओं लेश्यों का विस्तृत विवेचन है। इन लेश्याओं का आगम ग्रन्थों में अनेक स्थल पर उल्लेख है । उसका संकलन हुआ है। Cyclopaedia of Leshya के रूप में इस ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है। जिससे कि लेश्या विषय पर अनुसंधान करने वालों को व दर्शन शास्त्र में रुची रखने वालों को एक ही स्थान पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो सकेगी। एक अमेरिकन विद्यार्थी ने लिखा है कि हमने आपके द्वारा प्रकाशित लेश्या कोश पर शोध कार्य कर रहे हैं। (२) क्रिया कोश-द्वितीय पुष्प -- इसी प्रकार क्रिया कोश में आरम्भिकी आदि पच्चीस क्रियाओं का विस्तृत विवेचन है । क्रिया का एक रूप पुण्य-पाप का बंधन है और उसका दूसरा रूप कर्मबंधन से छुटकारा पाना है। क्रिया कोश में आगम तथा ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत विवेचन है। (३) मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास-तृतीय पुष्प-मिथ्यात्वी प्राणी का सद् आचरण श्रेष्ठ नहीं माना जाय तो उसका आध्यात्मिक विकास कैसे हो सकता है। श्रीचन्द्रजी चोरड़िया ने लगभग दो सो ग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन एवं आलोडन करके शास्त्रीय रूप में अपने विषय को प्रस्तुत किया है। अतः पंडित दहसुखभाई मालबणिया के शब्दों में यह ग्रन्थ लेश्या कोश तथा क्रिया कोश की कोटिका ही है। (४) वर्धमान जीवन कोश-प्रथम खंड-चतुर्थं पुष्प-प्रस्तुत ग्रन्थ जैन दर्शन समिति की कोश परम्परा की कड़ी में एक महत्व पूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ है। वर्धमान जीवन कोश यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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