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ग्रन्थरचना ।
नोट आरानिवासी श्रीयुत वावू जैनेन्द्रकिशोरजीसे प्राप्त हुए है, इसका रण उनका हृदयसे आभार मानकर श्रीजिनेन्द्रदेवसे प्रार्थना करते है कि, अपने सम्प्रदायके कवियोका परिचय देनेके लिये हमको इससे अधिक सामर्थ्य और साधन प्राप्त होवें । जब तक हम लोग अपने पूर्वपुरु-* पोके गौरवको न जानेंगे, उनके चरित्रोंको नहीं पढेंगे, तब तक हमारी अभ्युम्नति नहीं होवेगी । अलमतिविस्तरेण--
जीतेकरकी चाल-बम्बई
१४-३-०८ )
विदुषां चरणसरोरुहसेवी
श्रीनाथूराम प्रेमी।
शुद्धिपत्र ।
अशुद्ध (जत जर)
(तत जर-ज त जर)
पृष्ठ पति aee-१३
११७-११ १ १२६-१
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पं. K
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