Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

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Page 156
________________ १२६ वृन्दावनविलास ww * संवत्सर विक्रमतनों, गर्गन उरंग गज चन्दै। * पौषशुक्ल भृगु दोज दिन, लिख्यौ पत्र जयचन्द ॥ श्रीरस्तु। अथ प्रश्नोंका उत्तर। * १ प्रश्न-पद्मपुराणमें उत्तरपुराणमें रामचंद्रजीके कथनमें * अन्तर है सो कैसे है ? अर द्विसन्धान महाकाव्यमें राम पांडवनिका दोय अर्थ लागै है तामें कैसे लिख्या है! । । उत्तर-यह पूर्वाचार्यनिकी विविक्षाका भेद है। तहां है * अल्पज्ञकै विधिनिषेध करने लायक बुद्धि नाहीं । द्विसंधान काव्यमें भी कछू खोल्या नाहीं, जैसे है, तैसे प्रमाण है। * २ प्रश्न-सुननेमें आवै है जो जीव पर्याय छोड़े तब , पहले उर्द्धगमन करै । सो यह कैसे ? उत्तर-यह नेम नाहीं । जीव कर्मरहित होय तव तौ । ऊर्द्धगमन खभाव है, सो ऊई ही जाय । अर कर्मरहित । * संसारी है सो विदिशाळू वर्जिकरि चारि दिशा र अधः ऊर्द्ध जहां उपजना होय तहां जाय है। । ३ प्रश्न-जिनप्रतिमा खंडित होय तौ कौन कौन । * अंग खंडित मये अपूज्य होय ! * उत्तर-- उक्तं च# नासी मुखे तथा नेत्रे, हृदये नाभिमंडले । * स्थानेषु व्यंगतैतेषु, प्रतिमानैव पूज्यते ॥ ++Markercentu म

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