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वृन्दावनविलास
। और लिख्या कि तोडरमलजीकृत मोक्षमार्गप्रकाश ! * ग्रन्थ पूरण भया नाही, ताको पूरण करना योग्य है । सो कोई एक मूल ग्रन्थकी भाषा होय, तौ हम पूरण करें ।
नकी बुद्धि बड़ी थी। यात विना मूल ग्रन्थके आश्रय उनने के । किया । हमारी एती बुद्धि नाही कैसे पूरन करें। . और लिख्यौ न्याकरण सारखतकी वचनिका करि भेजी। *तो याकी बहुत• बोध होय । सो व्याकरणके पड़ावनेवाले ।
तौ काशीमै बहुत हैं । सारखतकी प्रक्रिया सिद्धान्तचन्द्रिका है। ताकू पढ़कर समझना । यातै तुमकू बोध हो जायगा । . और लिख्यौ जो तुमारे किये पदनिका पुस्तक भेजोगे। * तथा और आचारादि ग्रन्थनिकी वचनिका करि भेजोगे । सो *हमने एते ग्रन्थनिकी वचनिका करी है, श्लोक ५२००० ।। तत्त्वार्थसूत्र दशाध्यायीकी सर्वार्थसिद्धि आदिटीका है, ताके अनुसार श्लोक साढ़े ग्यारहहजार ११५०० । समयसारजीके श्लोक ग्यारहहजार ११०००। ज्ञानार्णवके लोक * दशहजार १०००० स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षाफलोग गा । * रिहजार ४०००। अष्टपाहड़जीके लोक ६२०० । परीक्षामुखन्यायग्रन्थके श्लोक चारिहजार १००० । देवागमनो। त्रके श्लोक दोहजार दोसै २२०० । द्रव्यसंग्रहका लोक ग्यारहतौ ११०० ।सामायिकपाठका लोक ११००१ पदक पुस्तक लोक ग्यारहसौ ११०० । या भानि पनि बनाई है। सो तुमारे यांचनेकी रुचि होय. ती नुमाग भानिया,