Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

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Page 170
________________ M MM RARARAM { - ११४० वृन्दावनविलास ........ कानेकद्वैताद्वैतरूपाः प्रतिनियतसुनयगोचराः प्रतिनियत हेत्वर्पणविशिष्टविवक्षावशतो यत्र सोयमनेकान्तः । इति । * व्युत्पत्तेस्ततो विस्पष्टभेदगतेरदृष्टेष्टविरोधकत्वात् विशदतरः प्रपञ्चितमेतत् प्रमेयकमलमार्तण्डाष्टसहल्यादिषु । मार्या । "विधिभावनानियोगा वेदार्थास्ते कथं स्फुटंवाच्या * वेदार्थस्य त्रयो व्याख्यातारः । भट्ट प्रभाकर वेदान्तिनः।। * १२ वेदके जो विधि भावना और वेदान्ती ये तीन अर्थ किये हैं, वे ! किस प्रकार सिद्ध होते हैं ! (पृष्ठ १२० प्रश्न ६) १३ भट्ट प्रभाकर और वेदान्ती ये तीन वेदका व्याख्यान करनेवाले हुए हैं। उनमें महमतानुयायी मीमासक भावनावाक्यार्थवादी है। प्रभाकर मतानुयायी नियोगवाक्यार्थवादी है। और वेदान्ती विधिवाक्यार्थवादी है।। निरवशेष योगको नियोग कहते हैं। उसमें किंचित् भी अयोगकी संभावना नहीं। यही उसका सामान्यरूप है । प्रेरणा चोदना ये भीउसके नामान्तर है।) और वह पृथक् मतभेदसे ग्यारह प्रकारका है। भावनाके शब्दभावना ! और अर्थभावना ऐसे दो भेद है। लिखा है कि "तिड् आदिक कहते है है अर्थात् उनसे जाना जाता है कि शब्दात्मक भावना अन्य है और यह सर्वार्थ भावना अर्थात निखिल अर्थोको कहनेवाली भावना पृथक । है। जो कि समस्त तिङन्तोंमें रहती है। यही विषय अष्टसहस्राकार। प्पणीमें इस प्रकार लिखा है कि किसी कार्यके करनेमें कर्ताकी जो प्र-1 योजक क्रिया है, उसको भाववादी लोग भावना कहते हैं । सत्तामात्र । * पुरुषाद्वैतवादको विधि कहते हैं क्योंकि " यही आत्मा देखने योग्य है, सुनने योग्य है और ध्यान करने योग्य है" इस वेदवाक्यसे सिद्ध । * होता है। तथा वेदान्तवादी ऐसा भी कहते हैं कि “मैं विलक्षण अ-* वस्था विशेषसे प्रेरणा किया गया हूं" इससे खय आत्मा ही प्रतिमासत ! होता है। बस यही विधि है। उक्त प्रकारसे इन तीनोंका संक्षेप कथन

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