Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 179
________________ शीलमाहात्म्य । शासनादारया ११९ । यह सिन्धुमें श्रीपालको आधार हुआ है। वप्राका परम शीलहीसे पार हुआ है ॥ ५ ॥ द्रोपदिका हुआ शीलसे अम्वरका अमारा । __ जा धातुदीय कृष्णने सव कष्ट निवारा ॥ सव चन्दना सतीकी, व्यथा शीलने टारा । __ इस शीलसे ही शक्ति विशल्याने निकारा ॥ ६॥ वह कोट शिला शीलसे लक्ष्मणने उठाई । इस शीलसेही नाग नथा कृष्ण कन्हाई ।। इस गीलने श्रीपालजीकी कोढ़ मिटाई। ___ अरु रैनमॅजूषाका लिया शील बचाई ॥ ७॥ इस शीलसे रनपाल कुंअरकी कटी वेरी । ___ इस शीलसे विष सेठके नन्दनकी निवेरी ॥ शूलीसे सिहपीठ हुआ सिहहीसेरी। ___ इस शीलसे कर माल सुमनमाल गलेरी ॥ ८ ॥ सामन्तभद्रजीने अहो, शील सम्हारा । शिवपिडतै जिनचन्दका प्रतिविम्ब निकारा॥ मुनि मानतुंगजीने यही शील सुधारा । तब आनके चक्रेश्वरी सव बात सम्हारा ॥ ९॥ * अकलकदेवजीने इसी शीलसे भाई। * ताराका हरा मान विजय बौद्धसे पाई ॥ गुरु कुन्दकुन्दनीने इसी गीलसे जाई। 1 गिरनारपै पापाणकी देवीको बुलाई ॥ १० ॥ FAR-KE - KE- REKK

Loading...

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181