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वृन्दावनविलास
* तिसतै सव भावियकालसमयकी, रास अनंत मनंता है। यह भेद सुमेदविज्ञानविना, क्या औरनको दरसंता हैः ॥ हो०॥
इक पुग्गलकी अविभाग अणू, जितने नममें थिति कीनाजी ।। * तितनेमहँ पुग्गल जीव अनंत, वसैं धर्मादि अछीना जी॥ * अवगाहन शक्ति विचित्र यही, नमकी वरनी परवीनाजी।। । इसही विधिसों सबद्रव्यनिमें,गुन शक्ति वसै अनकी नाजी।हो०॥
*इक काल अणूपरतें दुतियेपर, जाति जबै गत मंदी है। * इक पुग्गलकी अविभाग अणू, सो समय कही निरद्वंदी है ॥
इसतै नहि सूच्छमकाल कोई, निरअंश समय यह छंदी है। यातै सब कालप्रमान बँधा, वरनी श्रुति जैति जिनंदी है ।हो०॥
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* जब पुग्गलकी अविभाग अणू, अतिशीघ्र उताल चलानी है।। इक समयमाहिं सो चौदह राजू, जात चली परमानी है ।। परसै तह सर्वपदारथकों, क्रमसौ यह भेद विधानी है। । नहिं अंश समयका होत तहाँ,यह गतिकी शक्ति वखानी है।।होला
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गुन द्रव्यनिके आधार रहै, गुनमें गुन और न राजे है।। न किसी गुनसों गुन और मिलै, यह और विलच्छनता जै है। ध्रुव वै उतपाद सुभाव लिये, तिरकाल अवाधित छाजै है। पट हानरु वृद्धिसदीव करै, जिनवैन सुनें भ्रम माजे है । हो०॥