Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

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Page 117
________________ छन्दशतक । इन्द्रवज्रा (त त ज ग ग) नंदीश्वरद्वीप महा कहा है । चैत्यालये बावन जो तहाँ है ॥ । अष्टाहिकामाहिं प्रमोद हूजे। जो इन्द्रवज्रायुध धारिपूज॥३४॥ उपेंद्रवज्रा । ( ज त ज ग ग ) जहां प्रतिष्ठादिकको अखाड़ो । तहां महानंद समुद्र बाढ़ो ॥ *टाले सबी विघ्न दिगीश गाढ़ो। उपेन्द्रवज्रायुध धारिठाड़ो३५ * दुतिमध्यक। कसविध्वंसक श्रीजदुराई । जलविच कूद परे जिन ध्याई। * नाथ लियो झट देवफनिंदी । प्रगट भये दुतिमध्यकलिंदी ॥1 चंडी (र न भ ग ग) जो कुवादिखलझुंडविहंडी। मोहमहामहिषासुर खंडी। जो अबाध सुखकुंड उमंडी । सो सुभावमुदमंडित चंडी। कुसुमविचित्रा ( न य न य )। * कब कब पैहो नरपरजाई । सहज न जानो भविजन भाई।। जिनपद पूजो मन हरखाई । कुसुमविचित्रा प्रमुदित लाई ॥ चन्द्रवर्त्म (र न भस) सप्तवीस सुनछत्र वरन है । राशि द्वादश प्रमान करन है। * दोयैपाव दिन एकपर रहै । चन्द्रवर्तमहं भेद यह कहै ।। १इन्दवनाके आदिमें गुरु होता है । और उपेन्द्रवज्राके आदिमें लघु होता है, यही दोनों में अन्तर है । जिसके किसी चरणमें लघु हो, किसीमें। गुरु हो, उसे उपजाति कहते हैं । २ यह अर्द्धसमवृत्त है । अर्थात् इसके । पहले और तीसरे चरणमें ११ वर्ण (भभभ गग) और दूसरे चौथेमें (नज जय) १२ वर्ण है । ३सवा दो दिन। चन्द्रवर्त्म अर्थात् चन्द्रमाका मार्ग।।

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