Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

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Page 150
________________ वृन्दावनविलासजो तसु अंत लख्यौ केवल तो, जासु अंत सो है न अनंत ।। पुनि तिहिमध्य लोक नम भा,आदि अंत विन मघि किहि भता *प्रश्न ३~ रोड़क। कहे अनंते जीव तासुमहँ दोषराशि कहि । गनति विना किमि दाय होय सो उर विचार लहि ॥ पुनि नित शिवपुर जात सो न क्यों राशि समो है।। * उत्तर लिखहु सम्हार जुक्तजुत ज्यों मन मोहै ॥ १८॥ । प्रश्न ४- केदारा। अनंता नाम जो भाख्या । सो संज्ञा है कि संख्याख्या । । जो संख्या है तो है खंडो। अखंडोको न है खंडो ॥ १९॥ भुजंगी। ___ अनेकांत तो हेतुका दोष है। ___ सबी हेतुवादीनके पोष है ॥ तहां स्यादवादी अनेकांतका। ___ करै थापना क्यों कहो प्रांत का ॥ २० ॥ सदष्टासहस्त्रीविर्षे क्या लिख्यौ। लिखो जैशशी सो लिख्यौ सो लिख्यौ (8) ॥ प्रश्न ६- तथा वेदके भेद तीनों तहां । नियोगादि सोऊ लिखोगे यहां । प्रश्न ७- (समयसारके निम्नलिखित मगलाचरणके अर्थक विषयमें) चौपाई। नयनय लय सार शुभवार । पयपय दहय मार दुखकार ॥ . लयलय गहय पार भवधार | जयजय समयसार अविकार ।।

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