Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

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Page 140
________________ ११० वृन्दावनविलास मनमथ किम बाथै, प्रातभानू उचार । प्रिय सुफल न काको, बाल नेहे न सार॥ छप्पय । पंकज विनु नहिं रुचिर, कहा कोकिलमहँ सोहै ।। प्रतिहरि कहँ हरि कहा, करै जिन जजै सु को है ॥ कालादिक नव कहा, पार्थ जिनदिच्छातरु कहु।। समरस गुन जग कहा, काव्य नव भेद कौन सहु ॥ ॥ वश लोम मिलन इच्छै कहा, किहि कृत वृषधर शरमभनि ।। * सुनि उत्तर वृंदावन कहत, पंचवरन यह सरव धनि॥५॥ देयासहित कहु कौन, धरम कवि गुन किम लक्खिय।। मुनि त्यागन किहि चहै, कौन करि भवमय नक्खिय ॥ । गिरिजापति पद कौन, कौन निहचै पतालगत। पाप ताप अति घोर, ताहि क्या करिये कहो सत ॥ को हरत अमति सत-मति भरत, अरु वरदायक को शरन।। * सुनि वृंदावन उत्तर भनत, जैनवैन भवतपहरन ॥ ६॥ ७ सहित हेत कहु कहा, सुमति-तिय-संग कहा चहि ।। कहा असैनिहि नाहि, सुथिरपन मुनिसम किहि नहि ॥ १ तुकातकेपाचों भक्षसेंमें दशों प्रश्नोंका उत्तर है। यथा सर, रव, वध धनि, निध, धव, वर, रस, सरवधनि, निवरस । २ जैन, वैन,भव,तप, हर,रन, हरन, जैनवैन ।३धरम, रमन, मनन, ननग, नगर गरव, रवन, वनज, नजस, जसप, सपन।

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