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वृन्दावनविलास
मनमथ किम बाथै, प्रातभानू उचार ।
प्रिय सुफल न काको, बाल नेहे न सार॥
छप्पय । पंकज विनु नहिं रुचिर, कहा कोकिलमहँ सोहै ।। प्रतिहरि कहँ हरि कहा, करै जिन जजै सु को है ॥ कालादिक नव कहा, पार्थ जिनदिच्छातरु कहु।।
समरस गुन जग कहा, काव्य नव भेद कौन सहु ॥ ॥ वश लोम मिलन इच्छै कहा, किहि कृत वृषधर शरमभनि ।। * सुनि उत्तर वृंदावन कहत, पंचवरन यह सरव धनि॥५॥
देयासहित कहु कौन, धरम कवि गुन किम लक्खिय।। मुनि त्यागन किहि चहै, कौन करि भवमय नक्खिय ॥ । गिरिजापति पद कौन, कौन निहचै पतालगत। पाप ताप अति घोर, ताहि क्या करिये कहो सत ॥
को हरत अमति सत-मति भरत, अरु वरदायक को शरन।। * सुनि वृंदावन उत्तर भनत, जैनवैन भवतपहरन ॥ ६॥
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सहित हेत कहु कहा, सुमति-तिय-संग कहा चहि ।।
कहा असैनिहि नाहि, सुथिरपन मुनिसम किहि नहि ॥ १ तुकातकेपाचों भक्षसेंमें दशों प्रश्नोंका उत्तर है। यथा सर, रव, वध धनि, निध, धव, वर, रस, सरवधनि, निवरस । २ जैन, वैन,भव,तप, हर,रन, हरन, जैनवैन ।३धरम, रमन, मनन, ननग, नगर गरव, रवन, वनज, नजस, जसप, सपन।