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वृन्दावनविलास
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वर्णसवैयाप्रकरणसप्तक।
मंदिरा ( ७ भगण १ गुरु) * काल अनादि वितीत भयो, पगि पुग्गलसों जिय प्रीति ठई ।। * लाख चुरासिय जोनिनमें, दुख भोगतु है तिहिं संगतई ॥ * श्रीजिनवैन गहै न कमी, मनु ज्ञायकता गुन गोई गई। आप खरूप न जान सकै जु, पियो मदिरा मदमोहमई ॥९॥
मत्तगयन्द ( ७ भगण २ गुरु) जन्मउछाह-निवाह-नियोग, विचारि हिये हरि हर्षित हो है। । * आवत 'वृद' समाज समें वह, औसर देखत ही मन मोहै ॥
जाय सची जननी ढिगते, प्रभु लै कर सौपति है पतिको है। . इन्द्र जिनिन्द्रको गोद धेरै, चढ़े मत्तगयंद इरावत सोहै॥९५॥
मिला ( ८ सगण) अपनी विरदावलि पालनको, तुव संकट काटि वहावहिंगे।। * करुनानिधिवान निवाहनको, कछु लाज हियेमहँ लावहिंगे।।
शरनागतवच्छल दीनदयाल, तभी प्रभुजी कहिलावहिँ गे। मति सोच करोभविवृंद तुम्हें, सुखकंद जिनंद्र मिलावहिंगे९६१
भुजंग (८ यगण) । * कभी चेतनाकी निशानी न जानी,मनों ज्ञानवानी नसानी दसा है , तथा जैनवानी विजानी नही जो, मुनी भेदज्ञानी कसोटी कसा है।
१ इसे मालिनी उमा तथा दिवा भी कहते हैं । २ इसे मालती तथा इंदव भी कहते हैं। ३ दुर्मिल भी इसीका नाम है।