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छन्दशतक।
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अथ वर्णछन्द लिख्यते।
श्रीछन्द (१ वर्ण) 'दे। मे। ही। श्री ॥ १॥
मधुछन्द (२ वर्ण) जिन । धुन । सधु । मधु ॥ २ ॥
महीछन्द (२ वर्ण) जैती । गती । वही । मही ॥३॥ मंदरछन्द (वर्ण ३, भगण) कंदर । अंदर । सुंदर । मंदर ॥१॥
हरिछन्द (वर्ण ४ न ल) अरचत । परचत । जिनवर । हरि हर ॥ ५ ॥
धारि (रल) जैन जानि । मोह भानि ।
भर्म हारि । धर्म धारि॥६॥ १ हे भगवन् ! मुझे लक्ष्मी दो और लज्जा भी दो । २ पृथ्वीमें यति(मुनि) की गति 'वही' अर्थात् मोक्ष है । ३ कन्दराके भीतर सुन्दर म-* "न्दिर बना हुआ है । ४ इन्द्र और हर जिनेन्द्रदेवकी अर्चा (पूजा)। करते हैं और इनसे परिचय करते हैं।